________________
२७५.
साम्य
७००
कातन्त्रव्याकरणम् २७१. का० परौ सृदहोः
४।४।२६ घिणिन् प्रत्यय
लाघव पा० संपृचानुरुधाङ्यमा० ३।२।१४२ घिनुण् प्रत्यय गौरव २७२. का० क्षिपरटवदवादिदेविभ्यो वुण च ४।४।२७ घिणिन्-वुण् प्रत्यय सरलता
पा० संपृचानु०, निन्दहिंस०, देविक्रुशो० ३।२।१४२, १४६,१४७ घिनुण-वुञ् दुरूहता २७३. का० निन्दहिंसक्लिशखादानेक.० ४।४।२८ वुञ् प्रत्यय साम्य
पा० निन्दहिंसक्लिशखादविनाश० ३।२।१४६ वुञ् प्रत्यय साम्य २७४. का० देविक्रुशोश्चोपसर्गे
४।४।२९ वुञ् प्रत्यय
साम्य पा० देविक्रुशोश्चोपसर्गे
३।२।१४७ वुञ् प्रत्यय साम्य का० क्रुधिमण्डिचलिशब्दार्थेभ्यो युः ४।४।३० यु-प्रत्यय
साम्य पा० चलनशब्दार्थादकर्मकात्० ३।२।१४८,१५१ युच् प्रत्यय
साम्य २७६. का० रुदादेश्च व्यञ्जनादेः
४।४।३१ यु-प्रत्यय पा० अनुदात्तेतश्च हलादे: ३।२।१४९ युच् प्रत्यय
साम्य २७७. का० जुचङ्क्रम्यदन्द्रम्य०
४।४।३२ यु-प्रत्यय
साम्य पा० जुचक्रम्यदन्द्रम्य० ३।२ ।१५० युच् प्रत्यय
साम्य २७८. का० न यान्तसूदीपदीक्षा। ४।४।३३ युच्-प्रत्यय का निषेध साम्य
पा० न य:,सूददीपीक्षश्च ३।२।१५२,१५३ युच् प्रत्यय का निषेध साम्य २७९. का० शृकमगमहनवृषभू०
४।४।३४ उकञ् प्रत्यय
साम्य पा० लषपतपदस्थाभूवृष०
३।२।१५४ उकञ् प्रत्यय साम्य २८०. का० वृङ्भिक्षिलुण्टिजम्पिकुट्टां षाक: ४।४।३५ षाक प्रत्यय
साम्य पा० जल्पभिक्षकुट्टलुण्टवृङ: षाकन् ३।२।१५५ षाकन् प्रत्यय साम्य २८१. का० प्रे जुसुवोरिन् ।
४।४।३६ इन् प्रत्यय उत्कर्ष पा० प्रजोरिनि:, जिदृक्षिविश्रीण ३।२।१५६, १५७ इनि प्रत्यय अपकर्ष का० जीणदृक्षिविश्रिपरिभूवमा० ४।४।३७ इन् प्रत्यय पा० जिदृक्षिविश्रीण ३।२।१५७ इनि प्रत्यय
अपकर्ष २८३. का० दयिपतिगृहिस्पृहिश्रद्धा० ४।४।३८ आलु प्रत्यय
साम्य पा० स्पृहिगृहिपतिदयिनिद्रा० ३।२।१५८ आलुच् प्रत्यय साम्य २८४. का० शदिसदिधेड्दासिभ्यो रुः ४।४।३९ रु-प्रत्यय
साम्य पा० दाधेसिशदसदो रु० ३।२।१५९ रु-प्रत्यय
साम्य २८५. का० स्रदिघसां मरक्
४|४|४० मरक् प्रत्यय. साम्य पा० सृघस्यद: क्मरच्
३।२।१६० क्मरच् प्रत्यय साम्य २८६. का० मिदिभासिभन्जां घुर:
४।४।४१ घुर प्रत्यय
साम्य पा० भञ्जभासमिदो घुरच् ३।२।१६१ घुरच् प्रत्यय
साम्य २८७. का० छिदिभिदिविदां कुर:
४।४।४२ कुर प्रत्यय
साम्य पा० विदिभिदिच्छिदे: कुरच् ३।२।१६२ कुरच् प्रत्यय साम्य २८८. का० जागुरूक:
४।४।४३ ऊक प्रत्यय
साम्य पा० जागुरूक: ३।२।१६५ ऊक प्रत्यय
साम्य
उत्कर्ष