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________________ ६४८ कातन्त्रव्याकरणम् १३९१. क्षेर्दीर्घात् [४।६।१०६] [सूत्रार्थ दीर्घान्त क्षिधातु से उत्तरवर्ती निष्ठातकार को नकारादेश होता है।।१३९१। [दु० वृ०] दीर्घान्तात् परस्य क्षेर्निष्ठातकारस्य नकारो भवति। क्षीणः क्षीणवान्। दीर्घादिति किम्? क्षितायुर्जाल्मः। क्षितकस्तपस्वी।। १३९१। [वि०प०] क्षे०। क्षेर्निष्ठायां चेति दीर्घः। क्षितायुरिति आक्रोशदैन्ययोश्च वेति।।१३९१। [क० त०] क्षे०। पज्यां क्षेर्दीर्घ इति दीर्घत्वमिति। ननु कथमिदमुक्तं निष्ठायां चेति दीर्घविधानात्? सत्यम्, अत्रार्थकथनमेतत्। कुत्रचिन्निष्ठायां चेति दीर्घत्वमिति पाठः। धातोरतिदिश्यमान इयादेशः कथमनुकरणं लिङ्गस्य स्यादित्याह- टीकायां प्रकृतेरपीति। [पाठान्तरम् टीकायां प्रकृतिरपीति विभक्तिरपीति लिङ्गविभक्तिरित्यर्थः। अत्र हेतुमाह- भेदे हीत्यादि। अभेदे प्रकृतिवादिन्यायस्यावतारः। अस्याभावे कथं स्यादिति भावः। समाधत्ते आतिदेशिकानामिति लिङ्गस्यापि विद्यमानत्वात् स्यादिति भावः। उपसंहरति- नेतदिति। अतिदेशाद् धात्वतिदेशात् लिङ्गत्वं न स्यादिति नैतदित्यर्थः। स्पष्टयति नैर्देशिकीति। निर्देशोऽत्र लिङ्गं लैङ्गिकार्थः। क्षीयते इति देश्यं समाधत्ते किमनेनेतिः सूत्रत्वाद् ह्रस्वस्यापीयादेश इति शङ्का स्यादिति भावः]|१३९१। [समीक्षा) 'क्षीणः, क्षीणवान्' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में नकारादेश किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- “क्षियो दीर्घात्' (अ०८।२।४६)। अत: उभयत्र साम्य है। [रूपसिद्धि] १-२. क्षीणः, क्षीणवान्। क्षि+क्त, क्तवन्तु+सि। 'क्षि निवासगत्योः' (५।१७) धातु से क्त-क्तवन्तु प्रत्यय, “क्षेर्दीर्घः' (४।१।४०) से धातुगत इकार को दीर्घ, प्रकृत सूत्र से निष्ठातकार को नकार, नकार को णकार तथा विभक्तिकार्य।।१३९१। १३९२. श्योऽस्पर्श [४।६।१०७] [सूत्रार्थ स्पर्शभिन्न अर्थ में वर्तमान श्यैङ् धातु से परवर्ती निष्ठातकार को नकारादेश होता है।।१३९२। । सूत्रस्यास्य टीकापाठो नोपलभ्यते साम्प्रतम्। कलापतत्त्वार्णवव्याख्याकारेण स दृष्टः स्यादिति सम्भाव्यते।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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