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________________ ५४६ कातन्त्रव्याकरणम [रूपसिद्धि] १. जीवग्राहं गृह्णाति। जीव- ग्रह - णम्-मि। जीवं गृहाति। 'जीव' शब्द के उपपट में रहने पर 'ग्रह'धातु से णम् प्रत्यय, उपधादीर्घ तथा विभकिकार्य।। १३०३। १३०४. अकृते कृत्रः [४।६।१९] [सूत्रार्थ 'अकृत' शब्द के उपपद में रहने पर 'डु कृञ् करणे' (७७) धातु से णम् प्रत्यय होता है।।१३०४। [दु०वृ०] अकृते कर्मण्युपपदे कृत्रो णम् भवति। अकृतकारं करोति। अकृतं करोतीत्यर्थः।।१३०४। [समीक्षा] द्रष्टव्य सूत्र १३०३ की समीक्षा। [रूपसिद्धि] १. अकृतकारं करोति। अकृत-कृ-णम्-सि। अकृतं करोति। 'अकृत' शब्द के उपपद में रहने पर 'डु कृञ् करणे' (७७) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम् प्रत्यय, ऋकार को वृद्धि-आर् तथा विभक्तिकार्य।। १३०४। १३०५. समूले हन्तेः [४।६।२०] [सूत्रार्थ 'समूल' शब्द के उपपद में रहने पर ‘हन् हिंसागत्योः' (२।४) धातु से ‘णम्' प्रत्यय होता है।।१३०५। [दु० वृ०] समूले कर्मण्युपपदे हन्तेर्णम् भवति। समूलघातं हन्ति। समृलं हन्तीत्यर्थः।।१३०५। [समीक्षा] द्रष्टव्य सूत्र- १३०३ की समीक्षा। [रूपसिद्धि] १. समूलघातं हन्ति। समूल-हन्- णम्-अम्। समूलं हन्ति। 'समूल' शब्द के उपपद में रहने पर 'हन हिंसागत्योः ' (२।४) धात् संकत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय, हकार को घकार, नकार को तकार तथा विभक्तिकार्य।। १३०५।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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