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________________ विषयानुक्रमणी नियम, प्रपञ्चार्थ चतु:सूत्री, ‘इन्' प्रत्यय, बालसम्मोह, क्वनिप् प्रत्यय, 'ड' प्रत्यय, मन्दमतिबोधनार्थ सूत्रद्वय का विधान, निष्ठासंज्ञक प्रत्यय, 'वनिप्' प्रत्यय, प्रपञ्चार्थ सूत्रपाट, उच्चारणार्थ ऋकार-नकार, पाठसुखार्थ असन्देहार्थ तिप्-निर्देश) चतुर्थः क्वन्सुपादः ३३८-४२२ [क्वन्सु-कान प्रत्यय. भाषा में रूढ शब्द, प्रतिपत्तिगौरव, शास्त्रातिदेश, छान्दस शब्दों का कातन्त्र में अनादर, क्वन्सु-कान प्रत्ययान्त शब्दों का छन्द तथा भाषा में प्रयोग, उच्चारणार्थ-विशेषणार्थ-सार्वधातुकार्थ अनुबन्धों की योजना, मन्दबुद्धिबोधार्थ कार्य, वर्तमान काल, प्रपञ्चार्थ सूत्रविधान, सुखार्थ तिप्-निर्देश, गुरु-लाघवचिन्ता, अर्थवश विभक्तिविपरिणाम. निरतिशय आनन्तर्यरूप संहिता, सार्वधात्कार्थ-अगणार्थ-सुखार्थ अनुबन्धयोजना, प्रतिपत्तिगौरव, टीकाकार-वचन की साधुता तथा हेमोक्तवचन की असङ्गति, श्राविष्ठायन ऋषियों द्वारा विवाहिता वधू का मुण्डन कराना कुलधर्म, लाघवार्थ कार्य, शिष्टप्रयुक्त शब्द, गुणप्रतिषेधार्थ ककार, इज्वद्भावार्थ-उच्चारणार्थ अनुबन्धयोजना, कात्यायन-धातुवृत्तिकार के मत, वृत्करण, आगमशासन की अनित्यता, विवेक भी ज्ञान-विशेष है, पाठान्तरविचार, ताच्छील्यादि विवक्षा, ज्ञापनार्थ वुणग्रहण, भाष्यकार आदि के मत, सागर आदि आचार्यों के मत, अभिधान की प्रामाणिकता, सौत्र धातु 'जु', वाऽसरूपविधि, दुर्गादित्य-सागर आदि आचार्यों के मत, ज्ञापनार्थ दीपिग्रहण, नदाद्यर्थ षकारानुबन्ध, हेम आदि आचार्यों के मत, तद्धितान्त शब्दों की आकृतिप्रधानता, स्पष्टता के लिये योगविभाग, सौत्र धातु 'तन्द्रा', रूढि के कारण तद्धित प्रत्यय, स्पष्टार्थ अन्तग्रहण, छान्दस शब्द, प्रयोगानुसार भाषा में उपलब्ध शब्द, सुखार्थ तिप्-निर्देश, उच्चारणार्थ-अगुणार्थ-तकारागमार्थ अनुबन्धयोजना, निपातन से तीन कार्य, अभियुक्तों द्वारा शब्दपाठ, भाषा में रूढ शब्द, अगुणार्थ-बहुलार्थ ककारानुबन्ध, अन्त्यस्वरादिलोपार्थ डराकानुबन्ध, नदाद्यर्थ-उच्चारणार्थसुखार्थ अनबन्धयोजना, श्रीपति आदि के मत, प्रपञ्चार्थ सूत्ररचना, रूढिशब्द, क्तप्रत्ययान्त शब्दसंग्रह, शिष्टप्रयोग, गरीयसी विवक्षा, पूर्वाचार्यमत, महाभारत-सुश्रुत-वात्स्यायन-माघ-भारवि आचार्यों के प्रयोग, रूढिव्यवस्था, उणादि के कार्य, शाकटायन आचार्य का अभिमत. कातन्त्रव्याकरण में उणादि की अव्युत्पन्नता, यदृच्छाशब्दों की अनन्तता, कात्यायन-वृत्तिकारविषयक अभिमत, उणादि-प्रत्ययान्त शब्दों की भविष्यत्काल में साधुता, निपातनबल, पदकार का अभिमत, धात्वर्थ क्रिया, भाववाची शब्द, शन्तृङ्-आनश् प्रत्यय, वैचित्र्यार्थ कार्य]।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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