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________________ चतुर्भे कृतात्ययाध्याये प्रथमः सिद्धिपादः १२७ यहाँ यह विशेष ध्यातव्य है कि पाणिनि के अनुसार आकारादेश नित्य होता है। अत: 'विस्फारः, विस्फाल:' ही शब्दरूप साधु माने जाते हैं, जबकि कातन्त्रकार के अनुसार आकारादेश विकल्प से होने के कारण 'विस्फोरः, विस्फोल:' भी शब्दरूप सिद्ध होंगे। इस प्रकार नित्य-विकल्पविधि के कारण दोनों में भिन्नता है। [विशेष वचन] १. अन्ये वाग्रहणमनुवर्तयन्ति, परसम्मतमेतत् (दु० टी०)। २. उभयोर्विभाषयोर्मध्ये ये वि + धयस्ते नित्या इति, नैयासिकानां तु मतमेतत् (दु० टी०)। रूपसिद्धि] ___ १. विस्फारः, विस्फोरः। वि + स्फुर् + घञ् + सि। 'वि' उपसर्गपूर्वक 'स्फुर स्फुरणे' (५।१०२) धातु से भाव अर्थ में "भावे'' (४।५।३) सूत्र द्वारा घञ् प्रत्यय, 'घ् - ' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, “नामिनश्चोपधाया लघो:' (३।५।२) से उकार को गुण-ओकार, प्रकृत सूत्र द्वारा विकल्प से ओकार को आकार तथा विभक्तिकार्य। २. विस्फालः, विस्फोलः। वि + स्फुल् + घञ् + सि। 'वि' उपसर्गपूर्वक ‘स्फुल संचये' (५।१०३) धातु से 'घञ्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ॥९२९। ९३०. इज्जहातेः क्त्वि [४।१।७५] [सूत्रार्थ 'क्त्वा' प्रत्यय के परे रहते 'ओ हाक् त्यागे' (२।७१) धातुगत आकार को इकारादेश होता है।।९३०। [दु० वृ०] वा न वर्तते। क्त्वाप्रत्यये परे जहातेरिद् भवति। हित्वा गतः। जहातेरिति किम्? हाङ् - हात्वा।।९३०। [दु० टी०] इ०। इदिति। तकार: सुखोच्चारणार्थः। इज्जहाते: क्तिरित्युक्ते इदादेश इति सम्भाव्यता अविभक्तिनिर्देश उच्यते चेत्, जहातेरन्यस्य धातोरिति शक्यते। तिग्निर्देश: पाठसुखार्थः। अन्यथा इकारो हः क्त्वीति सिध्यति।।९३०। [वि० प०] इज्जहातेः। क्त्वीति सूत्रत्वादाकारलोपः।।९३०। [क० च०] इज्ज०। वा न वर्तते। 'उभयोर्विभाषयोर्मध्ये यो विधिः स नित्यः' (का० परि० ११) इति न्यायात् । स्फुरिस्फुल्योरित्यत्रापि व्यवस्थितवानुवर्तते। क्त्वीति। सूत्रत्वादिति पञ्जिका। ननु कथमेतद् यावता "आधातोरघुट्स्वरे' (२।२।५५) इत्यत्र धातुग्रहणमश्रद्धोपलक्षणम् इत्युक्तमस्ति। अतस्तेनैव सिद्धम्? सत्यम्। धातु
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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