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कातन्त्रव्याकरणम्
७९६. इवर्णादश्चिश्रिडीशीङः [३।७।१४] [सूत्रार्थ)
'श्वि-श्रि-डी-शी' धातुओं को छोड़कर एकस्वरविशिष्ट इवर्णान्त धातु को इडागम नहीं होता है, असार्वधातुक प्रत्यय के परे रहते ॥७९६।
[दु० वृ०]
इव०। “न डीश्वीदनुबन्धवेटाम्, न ,यवर्णवृताम्" (४।६।९०, ८९) इति । प्रतिषेधादन्यत्रेडिति न सुखावहम्, भिन्नकर्तृकत्वाच्च। 'अश्विश्रिडीशीङः' इति पर्युदासाद् वा। चिरि-अचिरायीत्। जिरि-अजिरायीत् । एवमुत्तरत्रापि।।७९६।
[वि० प०]
इवर्णा ०। एकस्वरादित्यादि। "दीधीवेव्योरिवर्णयकारयोः” (३।६।४१) इत्यन्तलोपः।।७९६।
[समीक्षा द्रष्टव्य समीक्षा-सूत्र सं० ७९५। [रूपसिद्धि
१.चेता। चि+ता। 'चित्र चयने' (४५) धात से श्वस्तनीविभक्तिसंज्ञक प्र० प्र०ए० व०' 'ता' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से अनिट् तथा "नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गणः" (३।५।१) से इकार को गुण-एकार।
२. चेष्यति। चि+स्यति। 'चित्र+स्यति। 'चिञ् चयने (४५) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक 'स्यति' प्रत्यय, इडागम का प्रतिषेध, गुण तथा “निमित्तात् प्रत्ययविकारागमस्थ: स: षत्वम्" (३२८।२६) से सकार को षकारादेश।
३. नेता। नी+ ता। ‘णीञ् प्रापणे' (१।६००) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, “णो नः” (३।८।२५) से धातुगत णकार को नकार, प्रकृत सूत्र से अनिट् तथा गुण।
४. नेष्यति। नी+स्यति। ‘णी प्रापणे' (१८६००) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक 'स्यति' प्रत्यय, अनिट, गुण तथा सकार को षकारादेश।।७९६।
७९७. उतोऽयुरुनुस्तुक्षुक्ष्णुवः [३।७।१५] [सूत्रार्थ)
'यु-रु-नु-स्नु-क्षु-क्ष्णु' धातुओं को छोड़कर एकस्वरविशिष्ट उवर्णान्त धातु से असार्वधातुकप्रत्ययनिमित्तक इडागम नहीं होता है।।७९७।
[दु० वृ०]
उकारान्तादेकस्वराद् युरुनुस्नुक्षुक्ष्णुवर्जितात् परमसार्वधातुकमनिड् भवति । होता, स्तोता : अयुरुनुस्नुक्षुक्ष्णुव इति किम्? यविता, रविता, नविता, स्नविता, क्षविता, क्ष्णविता। उत इति किम्? लविता। एकस्वरादिति किम्? प्रोर्णविता।।७९७।