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कातन्त्रव्याकरणम्
'जा' आदेश किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- “ज्ञाजनोर्जा'' (अ० ७।३। ७९)। वृत्तिकार-टीकाकार ने कहा है कि भावार्थक यण् प्रत्यय के परे रहते “ये वा' (४। १।७२) सूत्र से वैकल्पिक 'जा' आदेश होने के कारण जायते-जन्यते' दो रूप बनते हैं। टीकाकार के अनुसार उक्त सूत्र में व्यवस्थितविभाषा मान लेने से 'जा' आदेश नित्य ही प्रवृत्त होगा, फिर इस सूत्र को बनाने की क्या आवश्यकता है, इसका समाधान किया गया है कि प्रकृत सूत्र के रचयिता शर्ववर्मा हैं, जबकि "ये वा'' (४। १। ७२) सूत्र कृत्प्रकरण का है, जिसकी रचना वररुचि ने की है। इस प्रकार कर्ता के भेद से व्यवस्थितविभाषा नहीं हो सकेगी। फलत: सूत्र बनाना सार्थक ही है- 'नात्र चोद्यम्' "ये वा' (४।१ । ७२) इति व्यवस्थितविभाषया नित्यं भविष्यति किमनेनेति, भिन्नकर्तृकत्वात्।। ७६१।
[रूपसिद्धि]
१. जायते। जनी + यन् + ते। जनी प्रादुर्भावे' (३ । ९४) धातु से वर्तमानासंज्ञक आत्मनेपद - प्र० पु० - ए० व० 'ते' प्रत्यय, “दिवादेर्यन्'' (३। २। ३३) से ‘यन्' विकरण तथा प्रकृत सूत्र से 'जनी' को 'जा' आदेश।। ७६१ ।
७६२. ज्ञश्च [३।६। ८२] [सूत्रार्थ] विकरण के परे रहते ज्ञा' धातु को 'जा' आदेश होता है।। ७६२ । [दु० वृ०] ज्ञाधातोर्विकरणे जादेशो भवति। जानाति।। ७६२ । [समीक्षा]
‘जानाति' आदि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'ज्ञा' धातु को 'जा' आदेश किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- 'ज्ञाजनोर्जा'' (अ० ७। ३। ७९) पाणिनि ने 'ज्ञा - जन' दोनों के स्थान में जादेशविधानार्थ एक ही सूत्र बनाया है, परन्तु कातन्त्रकार ने स्पष्टावबोधार्थ दो सूत्र किए हैं।
[रूपसिद्धि]
१. जानाति। ज्ञा + ना + ति। 'ज्ञा अवबोधने' (८। ३१) धातु से वर्तमानासंज्ञक परस्मैपद - प्र० पु० – ए० व० 'ति' प्रत्यय, “ना ज़्यादे.'' (३। २। ३८) से 'ना' विकरण तथा प्रकृत सूत्र से ज्ञा' को 'जा' आदेश।। ७६२।।