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तृतीये आख्याताध्याये षष्ठोऽनुषङ्गलोपादिपाद: सूत्र द्वारा की है, परन्तु पाणिनीय व्याकरण में एतदर्थ स्वतन्त्र सूत्र नहीं है। महाभाष्यकार आदि व्याख्याकार ‘दरिद्रातरार्धधातुके लोपो वक्तव्यः' (म० भा० ६। ४। ११०) इस वचन को पढ़कर प्रकृत अपेक्षा की पूर्ति करते हैं।
[विशेष वचन १. तिपेत्यादि। नान्यत् फलमस्ति, पाठसुखार्थ इति भावः (दु० टी०)।
२. आद्भ्यो वदरिद्रातेरित्यत्र दरिद्रातिग्रहणं न कर्तव्यं स्यात्, प्रतिपत्तिगौरवं च (टु० टी०)।
३. नान्यत् किञ्चित् फलमस्ति, धातुस्वरूपमेव तिपा सुखार्थ निर्दिष्टमित्यर्थः (वि० प०)
[रूपसिद्धि]
१. दरिद्रयति। दरिद्रा + इन् + ति। ‘दरिद्रा दुर्गतौ' (२। ३७) धातु से इन् प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से आकार का लोप, धातुसंज्ञा, वर्तमानासंज्ञक 'ति' प्रत्यय, अन् विकरण, इकार को गुण-एकार तथा आयादेश।
२. अदरिद्रि। अट् + दरिद्रा + इच् + त। ‘दरिद्रा दुर्गतौ' (२। ३६) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक 'त' प्रत्यय, अडागम, प्रकृत सूत्र से आकार लोप, इच् प्रत्यय तथा तलोप।
३. दरिद्रः। दरिद्रा + अच् । दरिद्राति। दरिद्रा' धातु से “अच् पचादिभ्यश्च" (४। २। ४८) सूत्र द्वारा कर्ता अर्थ में 'अच्' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से आकार का लोप।
४. दरिद्राते। दरिद्रा + यण् + ते। 'दरिद्रा' धातु से कर्मार्थक वर्तमानासंज्ञक आत्मनेपद-प्र० पु०-ए० व० 'ते' प्रत्यय, “सार्वधातुके यण्' (३। २। ३१) से 'यण' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से आकारलोप।
५. दरिद्र्यात्। दरिद्रा + यात्। 'दरिद्रा' धातु से आशीविभक्तिसंज्ञक 'यात्' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से आकार का लोप।। ७१४।
७१५. वश्चिमस्जोधुटि [३। ६। ३५] [सूत्रार्थ
धुट्संज्ञक वर्ण के परे रहते 'वश्च्-मस्ज्' धातुओं के अन्तिम वर्ण का लोप होता है।। ७१५।
[दु० वृ०]
वश्चिमस्जोधुटि परेऽन्तस्य लोपो भवति। व्रष्टा, वक्ष्यति। मङ्क्ता, मक्ष्यति। नागमेऽन्तरङ्गत्वात् सस्य तृतीये सति पश्चाल्लोपः। धुटीति किम् ? वृश्च्यते।। ७१५ ।