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तृतीये आख्याताध्याये चतुर्थः सम्प्रसारणपाद:
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[समीक्षा]
'अगात्, अध्यगात्, अदात्, अभूत्' आदि अद्यतनी विभक्ति के शब्दरूपों में "सिजद्यतन्याम्” (३।२।२४) से होने वाले 'सिच्' प्रत्यय के लोप की जो अपेक्षा होती है, उसकी पूर्ति दोनों ही आचार्यों ने की है। पाणिनि का सूत्र है – “गातिस्थाघुपाभूभ्य: सिच: परस्मै" (अ० २।४।७७)। यह ज्ञातव्य है कि जिन धातुओं की पाणिनि 'घु' यह कृत्रिम संज्ञा करते हैं, कातन्त्रकार ने उनकी 'दा' यह अन्वर्थ संज्ञा की है, तदनुसार ही सूत्रों में यहाँ उनका पाठ किया गया है। पाणिनि के ‘गाति-पा' पाठ की अपेक्षा कातन्त्रकार का 'इण्–पिबति' यह पाठ अधिक स्पष्टार्थावबोधक है। 'केचित, एके' शब्दों से विविध पूर्वाचार्यों के मतों का व्याख्याकारों ने स्मरण किया है।
[विशेष वचन] १. इहापि इण्वदिकोऽपि ग्रहणम् इत्याह-अध्यगादिति (दु० टी०, वि० प०)। २. अलुग्विकरणेन भवतिना साहचर्यात् पिबतेर्ग्रहणं भविष्यति (दु० टी०)। ३. प्रतिपत्तिरियं गरीयसीति (दु० टी०)
४. वक्तव्यं व्याख्येयमिति। केचिन्नित्यं केचिद् विभाषेयं स्मरन्ति, तदनेन वाक्येनाविर्भावितमिति भावः (दु० टी०)।
५. वक्तव्यं व्याख्येयमित्याह – केचिदिच्छन्ति, केचिन्नेच्छन्ति। तन्मतं प्रमाणमित्यर्थः (वि० प०)।
[रूपसिद्धि]
१. अगात्। अट् + इण् + अद्यतनी-दि। ‘इण् गतौ' (२। १३) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद-प्रथमपुरुष एकवचन दि' प्रत्यय, “अड् धात्वादिस्तिन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिष" (३।८।१६) से धातुपूर्व अडागम, ‘सिजद्यतन्याम्' (३। २। २४) से सिच् प्रत्यय, “इणो गा" (३।४। ८३) से 'इण्' को 'गा' आदेश, “अनिडेकस्वरादात:' (३। ७। १३) से अनिट, प्रकृत सूत्र से 'सिच्' प्रत्यय का लुक् तथा प्रत्ययस्थ दलार को तकरादेश।
२. अध्यगात्। अधि + अट् + इक् + अद्यतनी-दि। 'इक् स्मरणे' (२। १२) धात् से अद्यतनीसंज्ञक 'दि' प्रत्यय, अडागम, सिच् प्रत्यय, 'इक्’ को ‘गा' आदेश, अनिट्, सिच्-लोप तथा 'द्' को 'त्'।।
३. अस्थात्। अट् + स्था + अद्यतनी-दि। 'ष्ठा गतिनिवृत्तौ' (१ ।२६७) धातु से 'दि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।
४. अदात्। अट् + दा + अद्यतनी-दि। 'डु दाञ् दाने' (२। ८४) धातु से 'दि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।
५. अधात्। अट् + धा + अद्यतनी-दि। ‘डु धा धारणपोषणयोः' (२।८५) धातु से 'दि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।