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कातन्त्रव्याकरणम् इत्यस्य व्यावृत्तिबलान्न भविष्यतीति चेत्, न। सूत्रकारमतमिदम् । नन द्यभवतीति "दिव उद् व्यञ्जने” (२। २। २५) इत्यनेन उत्वे कृते च्वी परत: कथन्न दीर्घः ? सत्यम्, उदिति उकारस्य स्वरूपग्रहणाल्लाक्षणिकत्वाद् वा।। ६०९।
[समीक्षा]
'चीयते, अग्नीयते, चीयात्, चेचीयते, पीकरोति' आदि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ नाम्यन्त धातु अथवा धातुघटित नामिसंज्ञक वर्ण को दीर्घादेश करने की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति दोनों ही व्याकरणों में की गई है। पाणिनि के सूत्र हैं - "अकृत्सार्वधातुकयोर्दीर्घः, च्वौ च” (अ० ७। ४। २५-२६)।
[विशेष वचन] १. नामीति सम्भवदर्शनार्थमिदम् (दु० वृ०)। २. आचार्यास्तु च्विशब्दं न पठन्ति, रूढिशब्दा हि तद्धिताः इति (दु० टी०)। ३. नामीति सम्भवदर्शनं मन्दधियां सुखबोधार्थमिति भावः (टु० टी०)। ४. यदेव सम्भवति तदेव दर्शितं सुखार्थमित्यर्थ: (वि० प०)।
५. नामीत्युपलक्षणं नाम्यन्तानामित्येतदपीत्यर्थः। न चान्तग्रहणादृते मध्यस्य स्यादिति वचनीयम्, 'ये' इत्युपश्लेषलक्षणसप्तमीत्वादिति वे० प०)।
६. सिद्धपक्षे योक्तवर्जमित्यस्य व्यावृत्तिबलान्न भविष्यतीति चेत्, न। सूत्रकारमतमिदम् (बि० टी०)।
[रूपसिद्धि]
१. चीयते। चि + यण् + ते। 'चिञ् चयने' (४। ५) धातु से वर्तमानासंज्ञक प्रथमपुरुष–एकवचन 'ते' प्रत्यय, कर्म अर्थ में "भावकर्मणो:' (३। २। ३०) से यण प्रत्यय, 'ण' अनुबन्ध का प्रयोगाभाव तथा प्रकृत सूत्र से चि – धातु के अन्त में विद्यमान इकार को दीर्घ।
२. मन्तूयति। मन्तु + यण् + ते। 'मन्तु' धातु से ति – प्रत्यय, “कण्ड्वादिभ्यो यण' से यण् प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से उकार को दीर्घादेश।
३. अग्नीयते। अग्नि + आयि + ते। अग्निरिवाचरति। 'अग्नि' शब्द से 'आचरति' अर्थ में 'आयि' प्रत्यय, आकार का लोप, प्रकृत सूत्र से अग्निघटित इकार को दीर्घ, 'अग्नीय' की धातुसंज्ञा, ते-प्रत्यय, अन् – विकरण तथा अकार का लोप।
४. पटूयति। पटु + यिन् + ति। पमिच्छति। 'पटु' शब्द से "यिन्' प्रत्यय, अनुबन्ध का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से उकार को दीर्घ, ‘पटूय' की धातुसंज्ञा, ति - प्रत्यय, अन् – विकरण तथा अकारलोप।
५. चीयात्। चि + आशी:- यात्। 'चि' धातु से आशीविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद - प्रथमपुरुष - एकवचन ‘यात्' प्रत्यय, तथा प्रकृत सूत्र से चि – धातुगत इकार को दीर्घ आदेश।