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कातन्त्रव्याकरणम्
स्वरव्यञ्जनसमुदाय के लिए 'अक्षर' संज्ञा का व्यवहार, 'प्रथयति' इत्यादि प्रयोगों में ऋकार को रकारादेश, इस 'र'-विधि में छह शब्दों का पाठ -
पृथु मूहूँ दृढं चैव कृशं च भृशमेव च।
परिपूर्व वृढं चैव षडेतान् रविधौ स्मरेत् ॥ क्रियासमभिहार अर्थ में वर्तमान व्यञ्जनादि धातु से 'य' प्रत्यय का विधान , दो प्रकार का समभिहार, वृत्ति-वाक्य की भिन्नार्थता, क्रिया के दो भेद, पूर्वाचार्यप्रसिद्ध चेक्रीयितसंज्ञा का व्यवहार, भाष्यकार-पदकार के विविध मत, वेदपाठ में वृषल का अधिकार नहीं, ‘गुपू' आदि धातुओं से 'आय' प्रत्यय का विधान, सौत्र 'ऋत' धातु]
१०. धातुसंज्ञा तथा आम्-प्रत्यय का विधान १९८-२१२
['सन्-यिन-काम्य-आयि-इन्-य-आय' प्रत्ययान्त शब्दों की धातुसंज्ञा, विशेषतः बालकों के अवबोधार्थ इस संज्ञा का विधान आवश्यक - 'प्रायेण गणपठितानामेव धातुत्वं मन्दधियः पश्यन्तोऽन्येषां न मन्येरन्निति भावः' (विवरणपञ्जिका), प्रकृत धातुसंज्ञा के सन्दर्भ में शर्ववर्मा के , प्रत्यय – 'सन्-यिन्-काम्य-आयि-इन-य-आय' तथा पाणिनि के १२ प्रत्यय - ‘सन्-क्यच्-काम्यच्-क्यङ-क्यष्-आचार क्विप्-णिच्-यङ्यक्-आय-ईयङ्-णिङ् । शर्ववर्मा द्वारा निर्दिष्ट ७ प्रत्ययों के अतिरिक्त दुर्गसिंह आदि के द्वारा 'ईयङ्-णिङ्' प्रत्ययों की मान्यता, चकास्-कासूप्रत्ययान्त धातुओं से 'आम्' प्रत्यय का विधान, 'प्रत्ययान्तेभ्यः' में 'अन्त' शब्द का पाठ सुखार्थ, भट्टिकाव्यकुमारसंभव के उदाहरण, 'दय-अय्-आस्' धातुओं से आम्-प्रत्यय, पृथक् सूत्र की रचना सुखावबोधार्थ, नाम्यादि-गुरुमान् धातु से आम् प्रत्यय, मैत्रेयरक्षित आदि आचार्यों के विविध मत, पाँच प्रकार की गुरुसंज्ञा का स्पष्टीकरण -
संयुक्तायं दीर्घ सानुस्वारं विसर्गसंमित्रम्।
विज्ञेयमक्षरं गुरु पादान्तस्य विकल्पेन ॥ (बँगलाभाष्य) 'उष्-विद्-जागृ' धातुओं से आम्-प्रत्यय) ११. 'कृ-भू-अस्' धातुओं का अनुप्रयोग
२१२-१७ [आम्-प्रत्ययान्त धातु से तीनों का अनुप्रयोग, लोक में सामान्य अभिधान की अप्रसिद्धि, विना अनुप्रयोग के अर्थोपलब्धि का अभाव, अर्थ का आन्तरतम्य होना, 'कृ-भू-अस्' का क्रियासामान्यवाची होना, पुरुषापराध से विपरीत प्रयोग की सम्भावना, प्रतिपत्तिगौरव के निरासार्थ अनुप्रयोग का विधान, शास्त्र में अनिष्ट की संभावना नहीं] १२. 'सिच्-सण-चण्-अण्-इच्-यण' प्रत्यय
२१७-३९ [अद्यतनी विभक्ति = पाणिनीय लुङ् लकार में 'सिच' प्रत्यय का विधान, इकार की योजना उच्चारणार्थ, नाम्युपध आदि धातु से सण् प्रत्यय, 'ण' अनुबन्ध