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कातन्त्रव्याकरणम्
ह्यस्तन्यद्यतनीविशेषप्रतिपत्त्यर्थं ह्यस्तन्यादयो भवितुमर्हन्तीति तद्बाधनार्थं सूत्रमिदमारभ्यते इति न दोषः इति हेमकरः ।। ४२८ ।
[समीक्षा
पाणिनि तथा कातन्त्रकार दोनों ही आचार्यों ने ‘स्म' इस अव्यय शब्द के प्रयोग में वर्तमानकालिक विभक्ति का विधान किया है । पाणिनि का सूत्र है - "लट् स्मे" (अ० ३।२।११८)। यह ज्ञातव्य है कि पाणिनीय लट् के लिए आचार्य शर्ववर्मा ने 'वर्तमाना' का व्यवहार किया है । इसमें लट्-निर्देश कृत्रिम है और वर्तमाना का निर्देश अन्वर्थ ।
[रूपसिद्धि]
१. दहति स्म त्रिपुरं हरः । दह + अन् + ति । 'दह भस्मीकरणे' (१।२४३) धातु से प्रकृत सूत्रद्वारा वर्तमाना विभक्ति ति, "अन् विकरण : कर्तरि" (३।२।३२) से प्रकृति-प्रत्यय के मध्य में 'अन्' विकरण तथा न् अनुबन्ध का प्रयोगाभाव ।
२. इति स्म जनः कथयति । कथ + इन् + अन् + ति । 'कथ वाक्यप्रबन्धे' (९।१७४) धातु से स्वार्थ में "चुरादेश्च' (३।२।११) द्वारा इन् प्रत्यय, “अस्य च" से अकारलोप, प्रकृत सूत्र से वर्तमान काल में वर्तमानासंज्ञक ति-विभक्ति, “अन् विकरणः कर्तरि" (३।२।३२) से अन् विकरण, “अनि च विकरणे" (३।५।३) से इन्प्रत्ययघटित इकार को गुणादेश तथा “ए अय्' (१।२।१२) से अयादेश ।। ४२८॥
४२९. परोक्षा [ ३।१।१३] [सूत्रार्थ ] भूतकाल में परोक्षासंज्ञक विभक्ति होती है ।। ४२९ । [दु० वृ०]
अतीते काले परोक्षा विभक्तिर्भवति । जघान कंसं किल वासुदेवः । कटं चक्रे देवदत्तः ।। ४२९।
[दु० टी०]
परोक्षा । अक्षाणाम् अक्षेभ्यो वा परम् इति विवक्षया निपातनादत्र परशब्दस्य पूर्वनिपातोऽक्षशब्दस्य चादेरुत्वमिति ।। ४२९ ।