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कातन्त्रव्याकरणम्
तथा शर्ववर्मा के १० प्रत्यय, 'इदम्' शब्द के स्थान में इ- एत-इत्-अ आदेश, सर्वनामसंज्ञक शब्दों (सामान्य - विशेष ) से तस्-त्र-ह-क्व - कु-दा-र्हि अधुना -दानीम्-थाधमु प्रत्ययों का विधान, बहु शब्द की संख्यावचनता- विपुलवचनता, अर्थानुसार विभक्ति का विपरिणाम, 'सद्य:' आदि शब्दों की निपातन से सिद्धि ] | ३५. नाम-आख्यात शब्दों से 'तम' आदि प्रत्यय, समासान्त अत् प्रत्यय, तिइवर्ण-अवर्ण-नकार-उवर्ण का लोप तथा अव्-आबू आदेश
पृ० सं० ५२३-३९ [ स्याद्यन्त - त्याद्यन्त शब्दों से 'तम' आदि प्रत्यय, अधिकार्थविवक्षा के कारण इसका निपातनविधि होना, क्रियाप्रधान की पूर्वाचार्यों द्वारा आख्यात संज्ञा, क्रियागुण का प्रकर्ष, उपचार की व्याख्या, समास के अन्त में विद्यमान 'राजन्' आदि शब्दों से अत् प्रत्यय, तकार की उच्चारणार्थ योजना, अव्ययों की अनेकार्थकता, अवयव का अवयव भी समास का अवयव, वा-शब्द का समुच्चय अर्थ, डकारानुबन्ध वाले प्रत्यय के पर में रहने पर विंशति-शब्दगत ति का लोप, स्वरादि यकारादि तद्धित प्रत्यय के पर में रहने पर इवर्ण-अवर्ण का लोप, लक्ष्यानुरोध से कहीं पर नकार का लोप, तद्धितसंज्ञक यकारादि तथा स्वरादि प्रत्यय के परवर्ती होने पर उवर्ण के स्थान में ओकारादेश, एय-प्रत्यय के परवर्ती होने पर उवर्ण का लोप, ओकार को अव् तथा औकार को आव् आदेश ]
३६. वृद्धि - आकार आदेश, 'ऐ-औ' आगम
पृ० सं० ५३९-५१
रहने पर पूर्ववर्ती शब्द
में
मुखवर्ती सभी स्थान,
[ तद्धितसंज्ञक णकारानुबन्ध वाले प्रत्यय के पर घटित आदि स्वर को वृद्धि-आकार आदेश, अकार के 'वैयाकरण' में एं तथा 'सौवश्विः' में औ आगम, आदि शब्द के चार अर्थ, वृद्धिग्रहण का सुखावबोध अथवा मङ्गलरूप प्रयोजन ] | ३७. प्रथमं परिशिष्टम्
पृ० सं० ५५३ - ६०० [ श्रीपतिदत्तप्रणीत कातन्त्रपरिशिष्ट - कारक प्रकरण के ११२, स्त्रीत्वप्रकरण के १०५ सूत्र, 'दैव-विप्रश्न-हिंसा-अ -अनाचार-व्यतिरेक-प्रतिनिधि-अतिक्रम-रिरंसु' आदि शब्दों के अर्थ, 'भाष्य-वार्त्तिक- भारत-माघ' आदि ग्रन्थों तथा 'चन्द्रगोमी - आपिशलिभागुरि' आदि आचार्यों के विविध अभिमत ] ।