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कातन्त्रव्याकरणम्
षष्ठस्तद्धितपादः २४. अपत्यार्थक अण् प्रत्यय
पृ० सं०४१४-२१ [अपत्यार्थ की विवक्षा में वैकल्पिक अण् प्रत्यय, अपम-सामान्य की विवक्षा में आद्य प्रकृति से ही प्रत्यय, पौत्रादि की प्रशंसा अभीष्ट होने पर गोत्रापत्य अर्थ में प्रत्यय, अपत्य शब्द की व्युत्पत्ति, व्याकरण की पदसंस्कारकता, अपत्यार्थक पाणिनि के २५ प्रत्यय - ३आदेश - ३आगम ७१ सूत्रों में, कातन्त्र के ५ प्रत्यय ६ सूत्रों में] | २५. गर्गादिगणपठित शब्दों से ण्यप्रत्यय पृ० सं०४२१ -२५
[गर्ग आदि शब्दों से अपत्यार्थ की विवक्षा में अण् प्रत्यय, गर्गादिगण की आकृतिगण के रूप में मान्यता, पाणिनीय गर्गादि गण में ८९ शब्दों का तथा कातन्त्रीय गर्गादिगण में ९९ शब्दों का पाठ] । २६. कुजादिगणपठित शब्दों से आयनण् प्रत्यय पृ० सं० ४२५ - २९
[कुञ्ज आदि शब्दों से आयनण् प्रत्यय, कुजादि गण की आकृतिगण के रूप में मान्यता, तद्धित शब्दों का रूढ होना, पाणिनि द्वारा 'फञ्' प्रत्यय का विधान तथा फ् को आयन् आदेश] । २७. अयादिगणपठित शब्दों से एयण प्रत्यय पृ० सं० ४२९ - ३३
[स्त्रीलिङ्गवाले आ-ई-ऊ-तिप्रत्ययान्त तथा अत्रि आदि शब्दों से अपत्य अर्थ में एयण् प्रत्यय, अत्र्यादि गण की आकृतिगण के रूप में मान्यता, पाणिनि द्वारा ढक् प्रत्यय का विधान और द को एय् ादेश] । २८. अकारान्त नाम पद से इण् प्रत्यय पृ० सं० ४३३ - ३७
[दक्ष आदि शब्दों से तथा बाह्वादिगण पठित शब्दों से अपत्यार्थ में इण् प्रत्यय, 'दाशरथाय' में अण् प्रत्यय का विधान, शेषविवक्षा अथवा लोकाभिधान के अनुसार बाह्वादिगण की आकृतिगण के रूप में मान्यता] । २९. समूह आदि अर्थों में अण् प्रत्यय पृ० सं०४३८-४८
[ रागयुक्त शब्दों से रक्त अर्थ में, नक्षत्रवाची शब्दों से युक्त अर्थ में, 'समूह - साऽस्य देवता-तद् वेत्ति अधीते वा-तस्येदम्' आदि अनेक अर्थों में अण् प्रत्यय का