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________________ कातन्त्रव्याकरणम् तदसदिति महान्तः। दक्षिणस्याश्च पूर्वस्याश्च दिशोरध उपरि वा या दिग् इत्यर्थे बहुव्रीहिप्रसङ्गो नास्त्येव, भिन्नाधिकरणानां लक्षणवशादेव बहुव्रीहेरभ्युपगमात् । अन्यथा सूत्रस्थितावपि उक्तविशेषद्वयस्य "स्यातां यदि" (२।५।९) इत्यादिसूत्रेण बहुव्रीहिः केन निवार्यते ? तथाग्रहणेन निवार्यते इति चेत्, तथाग्रहणशक्त्या वारणेऽपि लक्षणानुसारस्याभ्युपगमादिति संक्षेप इति ध्येयमन्यत् सुधीभिः। “दिशां वा" (२।१।३६) इति वाशब्दस्यान्तरस्थीयत्वान्न वर्गान्तत्वम् । तथाहि "क्रियाभावो धातुः" (३।११९) इत्यत्र टीकायां वा गतिगन्धनयोः' (२।१७) इत्यनेन वितर्कणाद् वाशब्दस्यान्तस्थात्वं निश्चितं "हावामश्च" (४।३।२) इत्यत्र वेञ्धातुना सह वितर्कणाद् वेञ्धातुरप्यन्तस्थात्वं सम्प्रसारणविषयत्वान्निश्चितम् । एतदेव मेदिनीकारोऽपि- अन्तस्थीयवकारान्तवर्गे 'वा स्याद् विकल्पोपमयोरेवार्थे च समुच्चये' (१८५।७४-७५) इत्युक्तवान् ।। ११५/ [समीक्षा] 'उत्तरपूर्वा + डे' इस अवस्था में कातन्त्रकार के अनुसार सार्वनामिक कार्य का तथा पाणिनि के अनुसार सर्वनामसंज्ञा का वैकल्पिक निषेध होता है- "विभाषा दिक्समासे बहुव्रीहौ" (अ० १।१।२८)। ___ व्याख्याकारों ने कहा है कि इस सूत्र को बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके अभाव में भी बहुव्रीहिसमास होने पर दिग्वाचक शब्द के पश्चात् सर्वनामप्रयुक्त कार्य नहीं होगा-“बहुव्रीहौ" (२।१।३५)। इसका समाधान इस प्रकार है- 'दक्षिणपूर्वायै मुग्धायै' इस प्रयोग में सर्वनामप्रयुक्त कार्य होने लगेगा, क्योंकि यहाँ विशेष्य पद है - मुग्धायै । दिग्भ्रम हो जाने वाली स्त्री को मुग्धा कहते हैं । 'दक्षिणपूर्वा' इस विशेषण का अर्थ है दक्षिण दिशा को ही जो पूर्वदिशा समझने लग जाए- दक्षिणा एव पूर्वा यस्याः सा, तस्यै । इस विशेषण में दक्षिणा और पूर्वा शब्द दिग्वाचक होने पर भी समास में दिग्वाचक नहीं रह जाते । अतः यहाँ इनके अप्रधान (गौण) हो जाने पर सार्वनामिक कार्य का निषेध ही होना चाहिए | "दिशां वा" (२।१।३६) सूत्र के अभाव में यहाँ भी सर्वनामप्रयुक्त कार्य प्रवृत्त होगा । सूत्र बनाए जाने पर 'दिशाम्' पद में वाच्यवाचकसंबन्ध - प्रयुक्त षष्ठी होने के कारण ‘दक्षिणपूर्वायै मुग्धायै' में सर्वनाम प्रयुक्त कार्य नहीं होता है ।
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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