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________________ कातन्वयाकरणम् व्यानेऽनक" (२।३।३५) से 'इद' को 'अ', प्रकृत सूत्र से अकार को एकार तथा "नामिकरपरः" (२।४।४७) से सकार को षकारादेश । २. वृक्षेभ्यः। वृक्ष + भ्यस् । प्रकृत सूत्र से अकार को एकार तथा "रेफसोविसर्जनीयः" (२।३।६३) से सकार को विसगदिश । [विशेष] 'वृक्षेभ्यः' आदि स्थलों में “अकारो दीर्घ पोषवति" (२।१।१४) से अकार को दीर्घ आदेश प्राप्त होता है, परन्तु 'पूर्वपरयोः परविपिर्बलवान्' (द्र०, कला० व्या०, पृ० २२१, सं०५०) इस परिभाषावचन के अनुसार परविधि (=एकारादेश) ही प्रवृत्त होती है ।।९८। ९९. ओसि च [२११।२०] [ सूत्रार्थ] षष्ठी - सप्तमी विभक्तियों के द्विवचने 'ओस्' प्रत्यय के पर में रहने पर लिङ्गान्तवर्ती अकार के स्थान में एकार आदेश होता है ।। ९९ । [दु० वृ०] अकारो लिङ्गान्त ओसि परे एकारो भवति । वृक्षयोः ।।९९ । [दु० टी०] ओसि० । ओसिति षष्ठी - सप्तमीद्विवचनं गृह्यते । सत्यप्यर्थभेदे कुतो द्विवचनाशङ्का यस्मादवशिष्टप्रत्ययहेतुः सामान्यमस्तीति ।।९९ । [समीक्षा] शर्ववर्मा तथा पाणिनि ने इस सूत्र की रचना समान रूप में की है | अतः 'वृक्ष + ओस्' इस अवस्था में अकार को एकारादेश होकर 'वृक्षयोः' शब्दरूप निष्पन्न होता है। [रूपसिद्धि] १. वृक्षयोः। वृक्ष + ओस् । प्रकृत सूत्र से क्षकारोत्तरवर्ती अकार को एकार, "ए अय्" (१।२।१२) से एकार को अय् तथा "रेफसोविसर्जनीयः" (२।३।६३) से सकार को विसगदिश ।। ९९।
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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