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प्रास्ताविकम् (अपाणिनीय विकरण)अन् (शप्), न (श्नम्), ना (श्ना), नु (श्नु), यन् (श्यन्), इन् (णिच्) । (अपाणिनीय संज्ञाएँ)
अग्नि (घि), अघोष, अद्यतनी (लुङ्), अनुबन्ध (इत्), अनुषङ्ग, अन्तस्था (यण्), आशीः (लिङ्-लोट्), ऊष्मन् (शल्), क्रियातिपत्ति (लुङ्), घुट् (सि आदि), घोषवत्, चेक्रीयित (यङ्प्रत्यय), जिह्वामूलीय, धुट् (झल्), नामी, पञ्चमी (लोट्), परोक्षा लिट्), भविष्यन्ती (लृट्), लिङ्ग (प्रातिपदिक), वर्ग, वर्तमाना (लट्), विकरण, व्यञ्जन (हल्), शिट्, श्रद्धा, श्वस्तनी (लुट्), सन्ध्यक्षर, सप्तमी (लिङ्), समान, स्वर (अच्), ह्यस्तनी (लङ्)। कातन्त्रव्याकरणीय चार अध्यायों के २५ पादों की सूत्र -संख्या इस प्रकार हैअध्याय पाद पादनाम
सूत्रसंख्या १. सन्धि
प्रथम
संज्ञापाद सन्धि द्वितीय
समानपाद सन्धि
ओदन्तपाद सन्धि
वर्गपाद सन्धि
विसर्जनीयपाद (प्रक्षिप्त षष्ठ निपातपाद में ८ सूत्र हैं) नामचतुष्टय
लिङ्गपाद नामचतुष्टय द्वितीय
सखिपाद नामचतुष्टय तृतीय
युष्मत्पाद नामचतुष्टय चतुर्थ
कारकपाद नामचतुष्टय
समासपाद नामचतुष्टय
तद्धितपाद (प्रक्षिप्त सप्तम स्त्रीप्रत्ययपाद में ६३ सूत्र हैं)
तृतीय चतुर्थ
पञ्चम
प्रथम
पञ्चम