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कातन्त्रव्याकरणम् सवर्णे दीर्घाभवति परश्च लोपम्, अवर्ण इवणे ए, ए अय्, वर्गप्रथमेभ्यः शकारः स्वरयवरपरश्छकारं न वा, विसर्जनीयश्चे छ वा शम्, भिसैस वा, डेर्यः" (कात० व्या० १।२।१,२, १२; ४।३; ५।१; २।१।१८, २४) आदि । इससे इसकी रचना-शैली पर्याप्त प्राचीन ही सिद्ध होती है।
६. कातन्त्रव्याकरण में कुछ ऐसे भी शब्दों का प्रयोग हुआ है , अर्थात् उनका साधुत्व बताया गया है, जिन्हें महाभाष्यकार पतञ्जलि आदि केवल वेद में ही प्रयुक्त मानते हैं । जैसे – 'देवेभिः, अर्वन्तौ, अर्वन्तः, मघवन्तौ , मघवन्तः' इत्यादि । इसी प्रकार 'दीघी, वेवी, इन्धि, श्रन्थि, ग्रन्थि तथा दम्भि' धातुओं को भी कातन्त्रव्याकरण में स्वीकार किया गया है । जब कि पाणिनीय व्याख्याकार इन्हें केवल वैदिक धातुएँ ही मानते हैं । मूल कातन्त्रव्याकरण केवल लौकिक शब्दों का ही साधुत्व बतलाता है । अतः उसमें उक्त शब्दों तथा धातुओं का उल्लेख होने से उसकी प्राचीनता ही सिद्ध होती है।
७. “सूत्राच्च कोपधात्" (पा० ४।२।६५) सूत्रद्वारा संख्याप्रकृतिक, सूत्रवाची तथा ककारोपध शब्द से अध्येतृ-अर्ध में होने वाले प्रत्यय का लुक होता है । इसके अनुसार 'अष्टौ अध्यायाः परिमाणम् अस्य' इस व्युत्पत्ति से निष्पन्न जो 'अष्टक' शब्द, उससे ‘अध्येतृ - वेदितृ' अर्थ (अप्टकम् अधीयते विदन्ति वा) में प्राप्त 'अण्' प्रत्यय का लुक् हो जाने पर 'अष्टकाः पाणिनीयाः' शब्दरूप सिद्ध होता है । इसी प्रकार ‘त्रयोऽध्यायाः परिमाणमस्येति त्रिकं काशकृत्स्नम्, तदधीयते विदन्ति वा त्रिकाः काशकृत्स्नाः ' का साधुत्व उपपन्न होता है | यहाँ ‘अष्टक, त्रिक' शब्द संख्याप्रकृतिक, सूत्रवाची तथा कोपध हैं । अर्थात् “सूत्राच्च कोपधात्" (पा० ४।२।६५) इस सूत्र में तथा कात्यायन के 'संख्याप्रकृतेरिति वक्तव्यम्' इस वार्त्तिक में जो लक्षण निर्दिष्ट हैं, वे सभी यहाँ प्राप्त होते हैं । फलतः सूत्रनिर्दिष्ट कार्य भी प्रवृत्त हो जाता है, उसी प्रकार ‘दशका वैयाघ्रपद्याः' भी निष्पन्न होगा | महाभाष्य में पतञ्जलि ने 'संख्याप्रकृतेरिति वक्तव्यम्' इस वार्तिक के दो प्रत्युदाहरण भी दिए हैं - माहावार्त्तिकः, कालापकः । इनके मूल शब्द (प्रातिपदिक) हैं - महावार्त्तिक और कलापक | इनमें 'महावार्तिक' शब्द सूत्रवाची और कोपध तो है, परन्तु संख्याप्रकृतिक नहीं है | इसीलिए यहाँ ‘अध्येतृ'-प्रत्यय ‘अण्' का लुक् नहीं होता । ___'कलापक' शब्द को भी इसी प्रकार सूत्रवाची तथा कोपध मानना ही पड़ेगा | केवल संख्या प्रकृतिक न होने के कारण उससे होने वाले अध्येतृ-प्रत्यय का लुक्