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२. कलापम्, कालापम् या कलापकम्
गौडदेशीय तथा तिव्वतदेशीय विद्वान् इस नाम का व्यवहार करते हैं । कलाम् = व्याकरणांशम्, संक्षेपम्, अल्पशब्दान् वा आप्नोति व्याप्नोति अधिकरोति वा कलापम्, तंदेव कालापम् | संज्ञा अर्थ में कन् प्रत्यय किए जाने पर कलापक शब्द बनता है । अर्थात् अनेक व्याकरणों के सार अंश को जो समाहृत किए हुए है, उसे कलाप कहते हैं | कलाप का अर्थ संग्रह भी होता है । अर्थात् बहुत से व्याकरणों का जिसमें संग्रह किया गया हो, उसे कलाप कहते हैं । कलाप = मयूरपिच्छ । शर्ववर्मा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शंकर ने कुमार कार्त्तिकेय को मनोरथ पूर्ति हेतु आदेश दिया । तदनुसार कार्त्तिकेय ने अपने वाहन मयूर के पख (पिच्छ) पर सूत्र लिखकर शर्ववर्मा को प्रदान किया । इस कारण भी इसको कलाप नाम दिया गया है -
कलापी का कारण है ।
कातन्त्रव्याकरणम्
=
शङ्करस्य मुखाद् वाणीं श्रुत्वा चैव षडाननः ।
लिलेख शिखिनः पुच्छे कलापमिति कथ्यते ॥
मयूर द्वारा इसकी प्राप्ति में सहायता किया जाना भी इस नाम
इसी कलाप शब्द से स्वार्थ में अणू प्रत्यय करने पर कालाप तथा संज्ञा अर्थ में कन्प्रत्यय करने पर कलापक शब्द निष्पन्न होता है ।
३. कौमारम्
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कुमार = कार्त्तिकेय द्वारा प्राप्त तथा प्रोक्त होने के कारण इसे कौमार कहते हैं | कुमार = सुकुमारमतिवाले बालकों के लिए अधिक उपकारक होने के कारण भी इसे कौमार नाम दिया गया है । वादिपर्वतवज्र भावसेन के अनुसार इस नाम का कारण बताया गया है - कुमारी = सरस्वती के द्वारा इसे अधिष्ठित = स्वीकार या प्रवर्तित किया जाना
ब्राह्म्या कुमार्या प्रथमं सरस्वत्याऽप्यधिष्ठितम् ।
अर्हम्पदं संस्मरन्त्या तत्कौमारमधीयते ॥
कुमार्या अपि भारत्या
अकारादिहपर्यन्तस्ततः
अङ्गन्यासेऽप्ययं क्रमः कौमारमित्यदः ॥
( कातन्त्ररूपमाला के अन्त में)