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कातन्त्रव्याकरणम् मङ्गलार्थाभिधायी न भवति, किन्तु स्वयमेव मङ्गलम् । यत्तु ‘षिधू शास्त्रे माङ्गल्ये च' (१।९) इति गणे पाठः, तस्यायमर्थः- मङ्गले कार्ये कर्तव्ये षिधधातुः प्रयुज्यते । यथा वै पादपूरणे । पादपूरणे कर्तव्ये वैशब्दः प्रयुज्यते, न तु तस्यार्थ इति ।।१।
[समीक्षा (कलापीय वर्णसमाम्नाय, ५२ वर्ण) -
अ आ, इ ई, उ ऊ, ऋ ऋ, लू लू, ए ऐ, ओ औ, - - - (अनुस्वार), : (विसर्ग), x (जिह्वामूलीय), M - 9 - 0 - 0 (उपध्मानीय), क् ख् ग् घ् ङ्, च् छ् ज् झ् ञ्, ट् ठ् ड् द् ण, त् थ् द् ध् न्, प् फ् ब् भ् म्, य र ल् व्, श् ष् स् ह्, क्ष् ।
(पाणिनीय वर्णसमाम्नाय - १४ माहेश्वर सूत्र, ४२ वर्ण) -
१. अ इ उण । २. ऋ लुक् । ३. ए ओङ् । ४. ऐ औच । ५. ह य व रट् । ६. लण् । ७. ञ म ङ ण नम् । ८. झ भञ् । ९. घ ढ धष् । १०. ज ब ग ड दश् । ११. ख फ छ ठ थ च ट त । १२. क पय् । १३. श ष सर् | १४. हल् | ___कलापव्याकरण के कश्मीरी संस्करण में जिह्वामूलीय, उपध्मानीय तथा क्ष् वर्ण प्रायः नहीं देखे जाते । जिनमें जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय वर्गों की अनुपलब्धि प्रामादिक हो सकती है, क्योंकि मूल सूत्रों में इनका उल्लेख हुआ है । इस प्रकार इस संस्करण में ४९ या ५१ वर्ण ही पठित हैं, जबकि वङ्गीय संस्करण में '' वर्ण भी समादृत है । इसे संयोगसंज्ञक वर्गों से मिलकर बनने वाले वर्गों के निदर्शनार्थ यहाँ प्रस्तुत किया गया है | अतः इस संस्करण के अनुसार ५२ वर्ण मान्य हैं । ये सभी वर्ण लोकव्यवहार में प्रसिद्ध पाठक्रम के ही अनुसार पढ़े गए हैं । इनमें १४ स्वर, ३४ व्यञ्जन तथा अनुस्वार - विसर्ग-जिह्वामूलीय-उपध्मानीय (४) प्रायः उभयविध माने जाते हैं।
पाणिनीय व्याकरण में वर्गों का पाठ लोकव्यवहारानुसारी नहीं है। इसके वर्णक्रम में भी भिन्नता है । तथा 'ह' को दो बार पढ़ा गया है | पाणिनि ने इस कृत्रिमता का आश्रयण प्रत्याहारप्रक्रिया के निर्वाह-हेतु ही किया है । इनके वर्णसमाम्नाय में ९ अच् (स्वर) तथा ३३ हल् (व्यञ्जन) देखे जाते हैं । अनुस्वार- विसर्गजिह्वामूलीय-उपध्मानीय को वर्णसमाम्नाय में पठित न होने के कारण अयोगवाह कहा जाता है | कलाप में ये योगवाह हैं।