________________
૪૫
औपशमिक, क्षायिक, मिश्र- क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक अने संयोगज - सांनिपातिक ए छ भाव छे. एना (अनुक्रमे ) बे, नव, अढार, एकवीश, त्रम अने छन्वीश भेदो छ । १३२. सम्यक्त्वचारित्रे |
औपशमिकभाani उपशमसम्यक्त्व अने उपशमचारित्र ए वे भेद होय छे ।
१३३. केवलज्ञानदर्शनदान लाभभोगोपभोगवीर्याणि च ।
क्षायिकभावमां- केवलज्ञान, केवलदर्शन, दानलब्धि, लाभ लब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि अने चशब्दथी क्षायिकसम्यक्त्व अने क्षायिकचारित्र एम नव भेद जाणवा ।
१३४. सशेषोपयोग देशानि ।
क्षायोपशमिकभावमां- शेषोपयोग-बाकीना दश उपयोगमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान, चक्षुदर्शन अवधिदर्शन, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान, देशविरति सहित दानादि पांच लब्धि- दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि अने वीर्यलब्धि, सम्यक्त्व अने चारित्र ए अढार भेद जाणवा ।
१३५.
गतिवेदकषायलेश्यामिथ्यात्वाऽज्ञानासंयतासिद्धत्वानि ।
औदयिक भावमां गति ४- नरकगति, तिर्यचगति, मनुष्यगति, देवगति, वेद ३ - स्त्रीवेद, पुरुषवेद अने नपुंसकवेद, कषाय ४ - क्रोध, मान, माया अने लोभ, लेश्या ६-कृष्ण, नील,