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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन
कारकों के क्रम का निर्देश मुख्यतया विभक्ति के क्रम के आधार पर किया जाता है । अतएव कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान तथा अधिकरण – ये कारक इस क्रम से गिनाये जाते हैं । पाणिनि के सूत्रों में 'विप्रतिषेध- परिभाषा' का अनुरोध रखकर दूसरा क्रम रखा गया है-अपादान, सम्प्रदान, करण, अधिकरण, कर्म तथा कर्ता । इसमें परस्पर तुल्य बल से विरोध या युगपत् प्राप्ति होने पर परवर्ती कारक का प्राधान्य होता है । हम लोग इन कारकों के चरण क्रम से महत्त्व का निरूपण कर चुके हैं, उस दृष्टि से क्रमशः महत्त्वपूर्ण बनने वाले कारकों का पाणिनीय क्रम अतिशय वैज्ञानिक है ।
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१. श० श० प०, पृ० ३४५ पर भर्तृहरि के नाम से उद्धृत‘अपादानसम्प्रदानकारणाधारकर्मणाम् । कर्तुश्वोभयसम्प्राप्तौ परमेव प्रवर्तते' |