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कारक - विषयक भारतीय चिन्तन का इतिहास
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शाबरभाष्य
मीमांसासूत्र के शाबरभाष्य में अनेकत्र कारकसामान्य तथा कारकविशेष की विवेचना हुई है' | शबर का एक स्थान पर कथन है कि कारक क्रिया से सम्बद्ध होता है, द्रव्य से नहीं ( १०।२२६५ ) | कारकविभक्ति में युक्त किसी भी शब्द का क्रियान्वित होना अनिवार्य है । इसे शबर कई उदाहरणों से स्पष्ट करते हैं ( १०।३।६३-६४ ) जैसे 'चतुरो मुष्टीन् निर्वपति' में 'चतुर: ' शब्द मुष्टि से सम्बद्ध न होकर 'निर्वपति' से सम्बद्ध है । इसी प्रकार 'हिरण्मयी प्रकाशौ अध्वर्यवे ददाति' में प्राकाश कर्मतया दान क्रिया से अन्वित है । कारकविभक्तियों के 'क्रियोपकारक होने पर भी यह बात नहीं कि सभी कारक समान हों । प्रत्येक कारक का क्रियासिद्धि के प्रति अपना विलक्षण ढंग है, जिससे उनमें एक-दूसरे की समानता का प्रसंग नहीं आता है । इस तथ्य की उपपत्ति ( ६।१।१७ ) कि 'यजते' क्रिया के कर्ता अध्वर्यु तथा यजमान अध्वर्यु के अर्थ में 'यजते' यजमान-पदार्थों के सम्पादन का अभिधान करता है । इसीलिए कारक का सम्बन्ध कर्म ( क्रिया ) मात्र से है, कर्मगुण से नहीं ( 'कारकस्य च कर्मणा सम्बन्धो न कर्मगुणेन' - शा० भा० ११।२।२ ) । कारकों में इसीलिए परस्पर विशेषण - विशेष्य भाव नहीं हो सकता - 'अप्सु अवभृथेन चरन्ति' इसमें दोनों ही शब्द 'चरन्ति' से सम्बद्ध हैं, परस्पर सम्बद्ध नहीं ( १०।६।२५ ) ।
शबर ने की है दोनों हैं, किन्तु
विभक्ति में वचन विवक्षित
कारकविभक्ति के वचन के सम्बन्ध में शबर का कथ्य है कि जब वचन विवक्षित हो तब कारक-व्यापार का संचालन वचनानुसार एक, दो या अनेक के द्वारा होता है । यहाँ भी कारकार्थ विभक्ति के द्वारा अभिहित होता है । विभक्ति वचन के साथ-साथ कारकार्थ का भी अभिधान करती है । इसीलिए जहाँ नहीं रहता, कारकार्थं का अभिधान करने के कारण उसके ( विभक्ति के ) आनर्थक्य का प्रसंग नहीं आता है । उदाहरणार्थ 'ग्रहं सम्माष्टि' में ग्रह का एकत्व अविवक्षित है तथापि विभक्ति सार्थक है, क्योंकि कारकार्थ का बोध कराती है जिससे ग्रह तथा मृजि-क्रिया के बीच सम्बन्ध स्थापित होता है - सभी ग्रहों के सम्बन्ध से मृजि-क्रिया
सिद्धि होती है ।
1. Dr. G. V. Devasthali, Mimamsa: The Vakyashastra of Ancient India, Chap. IX. para 9-27.
२. 'सर्वाणि च प्रधानस्योपकुर्युः । भिन्नानि च कार्याणि कुर्युः । तद् यथा कारकाणि कर्त्रादीनि सर्वाणि तावत् क्रियाया उपकुर्वन्ति । अथ च प्रतिकारकं क्रियाभेदः' । -- शाबरभाष्य ११।१।७ ३. तुलनीय - 'सुपां कर्मादयोऽप्यर्थाः सङ्ख्या चैव तथा तिङाम्' । ( पा० सू० १।४।२१ पर भाष्य ) । 'सङ्ख्याकारकबोधयित्री विभक्तिः' ।
Y. Mimamsa: The Vak. Sas. of Anc. Ind., Chap. IX, para 21