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संस्कृत - व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन
सप्तमी या पंचमी ग्रहण करता है । इसे अपादान और कर्मशक्तियों के बीच भी मान सकते हैं ।
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(ज) कुछ कर्मप्रवचनीयों के योग में भी सप्तमी होती है । जिससे अधिक होने या जिसके अधिकारी ( ईश्वर ) होने का निर्देश हो उसके वाचक शब्द में कर्मप्रवचनीयों के योग में सप्तमी होती है । यथा - उप निष्के कार्षापणम् (निष्क से कार्षापण अधिक होता है ) । उप परार्धे हरेर्गुणा: ( ह्नि के गुण परार्ध - संख्या से भी ऊपर हैं ) । ईश्वर का अर्थ रहने पर स्व और स्वामी दोनों में पर्याय से सप्तमी होती हैअधि रामे भूः, अधि भुवि रामः । दोनों का समान अर्थ है कि राम भू के अधिपति हैं। ( यस्मादधिकं यस्य चेश्वरवचनं तत्र सप्तमी २।३1९ ) । ईश्वर के अर्थ में अधि कर्म - प्रवचनीय है ( अधिरीश्वरे १।४ । ९७ ) । कृ धातु के पूर्व अधि-शब्द विकल्प से कर्मप्रवचनीय होता है ( विभाषा कृत्रि १०४ ९८ ), तदनुसार सप्तमी होती है - इह कार्येऽधिकृतोऽस्मि ( इस कार्य में नियुक्त हुआ हूँ ) । यहाँ नियुक्त करने वाले की ईश्वरता ज्ञात होती है ।
इस प्रकार सभी विभक्तियों के परिनिष्ठित प्रयोगों के स्थलों का निरूपण किया गया । अन्य प्रयोगों का भी समर्थन यथासाध्य इन नियमों से किया जा सकता है । आइ० जे० एस० तारापुरवाला के अपने ग्रन्थ 'संस्कृत सिटैक्स' में आधुनिक भाषाविज्ञान के आधार पर विभक्तियों के अतिव्यापक प्रयोग संस्कृत वाङ्मय के प्रसिद्ध ग्रन्थों से संकलित किये हैं, जो अपने-आप में बहुत उपयोगी तथा रोचक अध्ययन प्रस्तुत करते हैं । इस अध्ययन में उपपद-विभक्ति तथा कारक - विभक्ति का मिश्र निर्देश हुआ है, क्योंकि अंग्रेजी व्याकरण के समान भाषाशास्त्र भी विभक्ति तथा कारक ( Case ) में कोई विशेष अन्तर नहीं मानता। यह संस्कृत वैयाकरण की सूक्ष्म विश्लेषण विधि प्रतिकूल है ।
कारकविभक्ति का प्राबल्य
यद्यपि कारक-विभक्ति तथा उपपद-विभक्ति के स्थल पृथक्-पृथक् हैं तथापि दोनों विभक्तियों में कुछ स्थलों में परस्पर संघर्ष होता है । उपपद-सम्बन्ध किसी शब्द को दूसरी विभक्ति में व्यवस्थित करता है तो कारक के कारण उसे अन्य ही विभक्ति प्राप्त होती है । यह दोनों की युगपत् प्राप्ति का स्थल है । उदाहरण के लिए 'नमस्करोति' क्रियापद लें । इस क्रिया के फलाश्रयरूप देवादि शब्द को कर्म - कारक के कारण द्वितीया विभक्ति ( कारक -विभक्ति ) होनी चाहिए तो दूसरी ओर 'नमः' शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति ( उपपद - विभक्ति ) की भी प्राप्ति है । अब प्रश्न है कि 'देवम्' रहे या 'देवाय' या दोनों का विकल्प हो ?
१ 'सप्तमीपञ्चम्योः कारकमध्ये ' ( २।३।७ ) पर काशिका |
२. द्रष्टव्य -- संस्कृत सिटैक्स, ( मुंशीराम मनोहरलाल, दिल्ली ) प्रकाशित, १९६७ अध्याय ३, पृ० २१-६३ ।