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प्राकृत
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शाकारी भाषा का अर्थ है शबर, शक और उसी तरह के दूसरे पात्र जिस भाषा में बोलते हैं। मार्कण्डेय के अनुसार राजा का साला और दामाद इसी भाषा में बोलता है। चाण्डाली निम्न जाति की भाषा है। शाबरी भाषा को अंगारकार, व्याधा, लकड़हारा और कसाई आदि बोलते थे। एक और छोटी सी बोली ठक्की या टाक्की है। पिशेल ने इसे आधुनिक ढ़ाका से सम्बन्ध जोड़ा था किन्तु डा० सुनीति कुमार चाटुा इसका खण्डन करते हैं। उन्होंने इस टक्क को राजस्थानी बोली से सम्बन्ध जोड़ा है। इस तरह भरत के नाट्यशास्त्र (17-50, 55-56) के कथनानुसार अन्तःपुर में रहने वालों, सेंध लगाने वालों, अश्व-रक्षकों और आपत्ति ग्रस्त नायकों द्वारा मागधी बोली जाती थी। दशरूपककार (2, 65) के अनुसार पिशाच और नीच जातियाँ इस भाषा का प्रयोग करती थीं।
शूद्रक के मृच्छकटिक में संवाहक, शकार का दास स्थावरक, वसन्तसेना का नौकर कुंभीलक, चारुदत्त का नौकर वर्धमानक, भिक्षु तथा चारुदत्त का पुत्र रोहसेन ये छह पात्र (पृथ्वीधर टीकाकार के अनुसार) मागधी में बोलते हैं। शकुन्तला नाटक में दोनों प्रहरी और धीवर, शकुन्तला का बेटा सर्वदमन मागधी में वार्तालाप करते हैं। वेणीसंहार का राक्षस और उसकी स्त्री इसी प्राकृत का प्रयोग करते हैं। पिशेल का (प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृ० 45) कहना है कि सोमदेव के ललित विग्रह राज नाटक में जो मागधी प्रयुक्त हुई है वह वैयाकरणों के नियमों के साथ अधिक मिलती है। भाट और चर मागधी में बात करते हैं। शौरसेनी से मागधी की निम्नलिखित भिन्नतायें हैं. (1) कर्ता, सम्बोधन एक वचन संज्ञा शब्दों के अन्त में अ को ए हो जाता है-ऐसे पुलिसे, एशे मेशे, करेमि भन्ते । हेमचन्द्र ने निम्नलिखित व्याकरण के नियम दिए हैं
यद्यपि पोराणमद्ध-मागह भासा-निययँ हवइ सुत्त' इत्यादिनार्षस्य अर्द्धमागधभाषा नियतत्वमाम्नायि वृद्धस्तदपि प्रायोऽस्यैव