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प्राकृत
पालि किस काल तथा किस प्रदेश की भाषा थी
यह किस प्रदेश की भाषा थी यह पालि शब्द से पता नहीं चलता। लंका के बौद्ध भिक्खुओं का विश्वास रहा है कि पालि मगध की भाषा थी। इसमें बुद्ध भगवान का उपदेश उसी रूप में है। किन्तु पालि एवं मागधी भाषा में कुछ ऐसी भिन्नताएँ हैं जिसके कि कारण पालि मागधी भाषा से भिन्न है। वररुचि और हेमचन्द्र आदि प्राकृत भाषा के वैयाकरणों ने जिस मागधी का वर्णन किया है तथा जो संस्कृत के नाटक आदि में पाई जाती है वह पालि से बहुत परवर्ती मागधी भाषा के रूप का चित्रण करता है। मागधी में संस्कृत की स्, ष् ऊष्म ध्वनियाँ 'श्' में परिवर्तित हो जाती हैं किन्तु पालि में केवल दन्त्य 'स्' ही मिलता है। मागधी में केवल 'ल' ध्वनि है जबकि पालि में 'र' एवं 'ल' दोनों ध्वनियाँ पाई जाती हैं। अकारान्त पुल्लिग एवं नपुंसक के कर्ता कारक एक वचन में मागधी में 'ए' किन्तु पालि में 'औ' प्रत्यय लगता है जैसे मागधी-'धम्मे', पालि-'धम्मो'| जब हम इसे मागधी नहीं मानते तो प्रश्न उठता है कि आखिर यह किस प्रदेश की भाषा थी ? इस पर भी विद्वानों ने अपना विचार प्रकट किया
है।
डॉ० ओल्डन वर्ग ने खारवेल के अभिलेख की भाषा के आधार पर पालि को कलिंग की जनभाषा माना है। उनका विश्वास था कि कलिंग से होकर लंका में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ था। किन्तु यह मत मान्य नहीं है। वेस्टर गार्ड तथा ई० कुहन ने पालि को उज्जैन प्रदेश की भाषा माना है। दो बातों के आधार पर उन्होंने इस मत की पुष्टि की है। एक तो अशोक के गिरीनार (गुजरात) अभिलेख की भाषा की पालि से बहुत समानता है, दूसरे राजकुमार महिन्द (महेन्द्र) का जन्म उज्जैन में हुआ था और यहीं उनका बाल्यकाल बीता। यहीं से उसने लंका में बौद्ध का प्रचार किया होगा। वहाँ त्रिपिटक ले गया होगा। यह मत युक्तिसंगत होते हुए भी इसमें पुष्ट प्रमाणों का अभाव है। आर० ओ० फ्रैंक