________________
हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
हो चुकी थी। अशोक द्वारा वर्णित सात पाठों के अलावा भरहुत तथा साँची के स्तूप ने भी भगवान बुद्ध का उपदेश दिया है। इन स्तूपों से बुद्ध के जीवन की झाँकी मिलती है। भरहत और साँची के शिलालेखों से भिक्षु माणक, सुतंतिक, पंचनेकायिक (5 निकाय), पिटक जानने वाले और धम्मकथिक का पता चलता है। इन सभी प्रमाणों से यह विदित होता है कि 200 ई० पू० बुद्ध पिटक की सत्ता वर्तमान थी; सुत्त के 5 निकायों के साथ मिलिन्द प्रश्न जिसकी रचना प्रथम शती के अर्ध शती ईस्वी तक हो चुकी थी। इससे तिपिटक की सत्ता का प्रमाण मिलता है। पालि परम्परा को बौद्ध संस्कृत साहित्य भी सुरक्षित बनाए रखे हुए हैं। हीनयान और महायान की साहित्यिक रचना बुद्ध के पूर्वकालीन ज्ञान का स्रोत है।
इस तरह हम निर्णय कर सकते हैं कि पालि साहित्य के माध्यम से धार्मिक अभिव्यक्ति का ज्ञान 300 ई० प० की एक विशाल परम्परा का ज्ञान होता है जो कि 11वीं शती ईस्वी तक सुरक्षित रहता है। इसके बाद यह भाषा संस्कृत से प्रभावित हो चली। फिर भी इसमें काफी सरलता ही मिली। अगर हम धार्मिक साहित्य को छोड़कर शिलालेखों की शरण लें तो हमें भाषायिक सामग्री का ज्ञान कुछ अधिक होता है। पालि साहित्य में यद्यपि प्राचीन तत्त्वों की रक्षा होती है किन्तु इस पर पूर्व देश की अपेक्षा मध्य देश का प्रभाव अधिक है। अशोक के शिलालेख ई० पू० 270 से 250 ई० पू० के लगभग लिखे गए हैं। स्थल के अनुसार भिन्नता होते हुए भी ये सब के सब एक ही शैली में लिखे गए हैं। उत्तर पूर्व के शाहबाज गढ़ी और मानसेर के लेख दक्षिण पश्चिम के गिरिनार शिलालेख में भाषा की दृष्टि से भिन्नता है। ये शिलालेख अशोक की राजभाषा के द्योतक हैं । यह उसके प्रशासन और न्यायालय की भाषा है। राज भाषा बोलचाल की भाषा से कुछ भिन्न हुआ करती है। उसमें कुछ पुरातनता के प्रति आकर्षण होता है। इससे उसकी कुछ शिष्टता निभती है। इस आधार पर विद्वानों ने यह