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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
गोडी और लालाटी से क्या अनुसार प्राकृतशाची ।
वैयाकरणों की विभिन्न प्राकृत
प्राकृत के नाम से वैयाकरणों ने बहुत सी प्राकृत भाषाओं को समझा है। उनमें सबसे पुराने प्राकृत प्रकाश के लेखक वररुचि हैं। उसने 4 प्राकृतों का उल्लेख किया है-(1) महाराष्ट्री, (2) शौरसेनी, (3) मागधी और (4) पैशाची। 12 वीं शताब्दी के जैन वैयाकरण हेमचन्द्र ने तीन और प्राकृतों का उल्लेख किया है।
वररुचि ने अपभ्रंश का उल्लेख नहीं किया है। संभवतः उसने इसे प्राकृत से भिन्न माना हो। कुछ कवियों ने अपभ्रंश को देश भाषितया जनता की भाषा कहा है। दण्डी ने अपने काव्यादर्श में कहा है-'अपभ्रंश काव्यों में आभीर आदि की भाषा है' उसने प्राकृत से महाराष्ट्री का उल्लेख किया है जो कि उत्कृष्ट प्राकृत थी। शौरसेनी, गौडी और लाटी प्राकृत-मागधी का दूसरा नाम गौडी भी था। किन्तु उसने लाटी से क्या अर्थ लिया है? यह स्पष्ट नहीं होता। वररुचि और दण्डी के अनुसार प्राकृत के 4 भेद होते हैं-1. महाराष्ट्री, 2. शौरसेनी, 3. मागधी और 4. पैशाची। हेमचन्द्र ने इसके 6 भेद किए हैं 1. महाराष्ट्री, 2. शौरसेनी, 3. मागधी 4. अर्धमागधी या आर्ष, 5. पैशाची और चूलिका पैशाची, 6. अपभ्रंश। लक्ष्मीधर ने यही भेद किया है। लक्ष्मीधर का कहना है कि पैशाची भाषा विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाती है-पाण्ड्य, केकय, बाहलीक, सह्य, नेपाल, कौन्तल, सुदेश, भोट, गान्धार, हेव (हिमवत्)
और कन्नौज। भरत ने 7 भाषाओं का उल्लेख किया है। उसने प्राच्या, अवन्ती और वाह्लीका को भी जोड़ दिया है। इसके अतिरिक्त उसने नाटकों में प्रयुक्त होने वाली विभाषाओं का भी उल्लेख किया है-शबर, आभीर, चाण्डाल, सचर, द्रविड़, औड्रज, वनेचर। साहित्य-दर्पणकार ने (14वीं शताब्दी) शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्धमागधी, प्राच्या, अवन्तिका, दाक्षिणात्या, शाकारी, बाहलीकी, द्राविडी, आभीरी और चाण्डाली प्राकृत भाषाओं का उल्लेख किया है। प्राकृत लंकेश्वर, ने उदीची, महाराष्ट्री, मागधी, मिश्र, अर्धमागधी, शाकाभीरी,