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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
हमें विभिन्न स्रोतों से होता है। इसके आधार हैं शिलालेख एवं साहित्यिक रचनायें। शिलालेखों में प्रसिद्ध अशोक के शिलालेख हैं, दक्षिण पालि साहित्य या हीनयान बौद्ध साहित्य, जैन साधुओं की प्राकृत, कविता, गीत, काव्य और नाटक तथा प्राकृत व्याकरण से भी हमें इसका ज्ञान होता है। मध्यकाल के अन्तर्गत परवर्ती प्राकृत यानी अपभ्रंश का काल भी आता है। इसका वर्णन 12वीं शताब्दी में हेमचन्द्र ने किया था। यह वस्तुतः नव्य भारतीय आर्यभाषाओं का उद्गम स्रोत बताने वाली भाषा है। पुरानी हिन्दी का सबसे पुराना साहित्य 12वीं शताब्दी का पृथ्वीराज रासो है।
___ मध्यकाल को भी हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-(1) पुरानी प्राकृत या पालि (2) मध्य प्राकृत (3) परवर्ती प्राकृत या अपभ्रंश।
(1) पुरानी प्राकृत या पालि-पुरानी प्राकृत के अन्तर्गत
(क) तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मध्यकाल के शिलालेख से लेकर द्वितीय शताब्दी ईसा के बाद तक का काल आता है। समय और काल के अनुसार बहुत सी बोलियाँ इसके अन्तर्गत प्रचलित हुई। इसी में हीनयान साधुओं की पालि और दूसरी बौद्ध रचनाएं हुयीं जैसे कि महावंश और जातक हैं।
(ख) जातकों या बुद्ध की जन्म कथाओं और पद्यों (गाथाओं) की भाषा जिनमें गधों की अपेक्षा कृत्रिमता अधिक है।
(ग) पुराने जैन सूत्रों की भाषा ।
(घ) पूर्वकालीन नाटकों की प्राकृत जैसे कि अश्वघोष की रचना।
(2) मध्य प्राकृत-मध्य प्राकृत के अन्तर्गत । (क) महाराष्ट्री (दक्षिण) गीतों की भाषा।
(ख) दूसरी प्राकृत यानी शौरसेनी, मागधी आदि जैसा कि कालिदास और अन्य लोगों के नाटकों तथा व्याकरणों में पाई जाती है।