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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
वैदिक एवं लौकिक संस्कृत में अन्तर
इस प्रकार पुरानी भाषा के दो भेद हुए-(1) 'वैदिक' जिसे छान्दस भी कहते हैं और (2) दूसरा 'लौकिक' जिसे संस्कृत कहते हैं। पहला दूसरे से अर्थ में भिन्नता रखता है। पुरानी भाषा की रक्षा वेद में की गई है-मुख्यतया ऋग्वेद में। हम पहले बता चुके हैं कि यह भारत की सबसे पुरानी भाषा का रूप है। हमारे भाषा सम्बन्धी अध्ययन में एक बात ध्यान देने की है कि पद्य और गद्य के बीच में भाषा सम्बन्धी संक्रांति काल है जिसमें बहुत से शब्द कई दृष्टियों से परिवर्तित हो गए थे। बहुत से नए शब्द अभिव्यक्ति और अस्तित्व की दृष्टि से सामने आ गए थे। वैदिक भाषा के अन्तिम चरण का प्रतिनिधित्व उपनिषद् और पुराने सूत्र करते हैं। भण्डारकर० आदि विद्वानों ने इस काल की संस्कृत भाषा के विकास के समय को तीन कालों में विभक्त किया है। यह काल ब्राह्मण से लेकर पाणिनि तक का काल माना गया है। इसे कुछ लोगों ने मध्य संस्कृत काल कहकर भी पुकारा है। वैदिक और क्लासिकल संस्कृत की विभाजक रेखा यास्क माने जाते हैं। यास्क का समय क्लासिकल संस्कृत के लिए पृष्ठाधार माना जाता है। लगातार संस्कृत के विकास के समय से ही यह प्रतीत होने लगता है कि संस्कृत के व्याकरण के नियम जटिल होते जा रहे थे। जब ब्राह्मण का गद्य काल आता है तब बहुत ही कृत्रिम सूत्र शैली की वृत्ति बढ़ती हुई नजर आने लगती है। इसी शैली में दर्शन तथा व्याकरण शास्त्र लिखे गए थे। इस काल में परिभाषा का महत्व अधिक बढ़ता जा रहा था ।12 थोड़े में अधिक कहने की वृत्ति बढ़ रही थी।
पुरानी भाषा पुरानी संस्कृत के रूप में आई और यह दो भाषाओं के रूप में दीख पड़ने लगी। यद्यपि इससे हम सहमत नहीं हैं कि परिनिष्ठित संस्कृत कृत्रिम भाषा थी और न तो हम यही कह सकते हैं कि संस्कृत व्याकरण का नियम संस्कृत के विकास में बाधक रहा और इसे अगतिशील भाषा बना दिया। छान्दस भाषा लौकिक या प्रचलित संस्कृत से उच्चारण, ध्वनि और कुछ