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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
समापिका क्रियाओं के रूप
1. वर्तमान निर्देशक प्रकार (प्रेजेंट इंडिकेटिव) 2. आज्ञा प्रकार (इम्पेरेटिव) 3. भविष्यत् (फ्यूचर)
4. विधि प्रकार (ओप्टेटिव) असमापिका क्रियाओं के रूप
1. वर्तमान कालिक कृदन्त (प्रेजेंट पार्टिसिपिल) 2. कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त (पेसिव पास्ट पार्टिसिपिल) 3. भविष्यत्कालिक कर्मवाच्य कृदंत (जीरंड) 4. पूर्वकालिक असमापिका क्रिया (एब्सोल्यूटिव) 5. तुमन्त रूप (इनफिनिटिव)
साधारणतः तीन प्रकार (Moods) पाये जाते हैं :-1. निर्देशक प्रकार (इंडिकेटिव) 2. आज्ञा प्रकार (इम्पेरेटिव) तथा 3. विधि प्रकार (ओप्टेटिव)। संयोजक प्रकार (सब्जंक्टिव मूड) का कोई अलग से रूप नहीं है। यहाँ निर्देश प्रकार के साथ ही 'जइ' (यदि) जोड़कर संयोजक प्रकार के भाव की व्यंजना कराई जाती है। जैसे' :सेर एक्क जइ पावउँ घित्ता, मुंडा बीस पकावउँ णित्ता।
. (प्राकृत पैंगलम् 1,130) एका कित्ती किज्जइ जुत्ती जइ सुज्झे (प्रा० पैं० 2,142)
प्रा० भा० आo. में दो पद मिलते हैं:-परस्मैपद और आत्मने पद । प्राकृत में आत्मनेपद का प्रयोग कम व्यवहृत होने लगा। अपभ्रंश का युग आते-आते आत्मनेपद समाप्तप्राय सा हो चला। फिर भी कुछ रूप अवशिष्ट से रहे। संस्कृत के अनुकरण पर कुछ रूप पाये जाते हैं। कभी-कभी छन्दो निर्वाहार्थ भी कतिपय आत्मनेपदीय रूप परवर्ती अपभ्रंश में पाये जाते हैं। यह प्रायः चरण के अन्त में पाया जाता है। प्राकृत पैंगलम् में आत्मनेपद के रूपः