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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
10. वि < प्रा० भा० आo-वि
हे0 8/4/ 396-विणिज्जअउ (विनिर्जितः), 4/395 वित्थारु (विस्तार) 4/423-विप्पिअ आरउ (विप्रिय कारकः), 4/424-विआलि (विकाले), विच्छोह गुरु (विक्षोभकरः), विसमा (विषमा), विसिटु (विशिष्ट),
11. सहार्थक स,
हे० 8/4/401-सदोसु (सदोषः), 4/420-सलोणी (सलावण्या); 4/430-सलज्जु (सलज्जः ), 4/439,3 सरोसु (सरोषः), ससणेही (सस्नेहा), सकण्ण (सकर्णिका), __12. प्राशस्त्य वाचक सु < प्रा० भा० आo-सु
हे० 8/4/422-सुपुरिस (सुपुरूषः), 4/422,90-सुअणेहि (सुजनैः), 4/423, 2-सुहच्छडी (सुखासिका), सुवंस, सुकइ (सुकविः)
13. सं० < प्रा० भा० आo-सम्
हे० 8/4/395, 2 संसित्तउ (संसिक्तः) 4/395/5–संमुह (सम्मुख), 4/422 संवेरवि (संवरीतुं), 4/422-संपडिय (संपतितः), संहार (संहार),
14. कु < प्रा० भा० आ०-कु कुगइ (कुगतिः)
इस प्रकार हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में पूर्वोक्त उपसर्ग उपलब्ध होते हैं। इसके अलावा और भी उपसर्ग अपभ्रंश में हो सकते हैं। जो कि प्राचीन भारतीय आर्य भाषा से चलते आ रहे हैं।
संदर्भ
1.
हिन्दी साहित्य का आदि काल, पृष्ठ 43 प्रकाशन राष्ट्रभाषा परिषद पटना