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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
कर्ता० पुं०, ए० व० में पा० यो, प्रा० जो, < यः, पा०, या, प्रा०, अप०, जा < या, अप० जेहिं (तृतीया पुं० से); कर्ता, कर्म० नपुं०, पा० यं० प्रा०, अप० जं । अशो० यो, अप० जु < यः (पुल्लिंग), अप० जेहु < * येषः, जूं (क्रमदीश्वर के अनुसार) धुं (हेमचन्द्र के अनुसार) । कर्म, पुं०, स्त्री०, पा० यं, प्रा०, अप० जं < यां। करण, पुं०, नपुं०, पा० येन, प्रा०, अप० जेण। जें (जे)। प्रा० जिणा < * यिना (ऋग्वेद अना)। तृतीया-पंचमी, स्त्री० पा० याय, अप०, जाई, जाहे। पंचमी पुं०, नपुं० पा० यम्हा, यस्मा < यस्मात्, प्रा० जम्हा, अप० जम्हां, जहाँ । सम्बन्ध, पुं०, नपुं०, पा० यस्स < यस्य, अप० जाह < * यास = यस्य, अप० जासु (स्त्री०) < * यस्याः या यासु, जस्सु, जसु (सप्तमी ब० व०), सम्बन्ध, स्त्री०, पा० यस्सा < यस्याः, याय (तृतीया, पंचमी), अप० जासु, जाहे, जाहि <* यास (य) अइ। सप्तमी, पुं० नपुं०, पा० यम्हि, अप० जम्हि, जहिं, जहि, जाहि < * याभिं; जाए, जीए, जगु (क्रमदीश्वर)। सप्तमी, स्त्री० पा० यस्सा (षष्ठी-सप्तमी के अर्थ में), अप० जस्सम्मि, जम्हि, जाहि < यस्य + स्मिन्, जाम (= यस्मिन् प्रा० पैंगलं, 2,133), जाए, जीए। प्राकृत पैंगलम् में जहा रूप भी मिलता है। जही तथा जहि रूप भी पाया जाता है। हेमचन्द्र 8/2/162 के अनुसार यत्र के अर्थ में जहि और जह रूप भी चलते हैं।
कर्ता० पुं०, ब०, वo-पा० ये, प्रा०, अप० जे, अप० जि < यः | कर्ता० स्त्री०, ब० व०, पा० या, प्रा० जा, अप० जाउ < याः । कर्ता, कर्म०, नपुं०, पा० यानि < यानि, अप० जाइं < यानि। करण पुं०, स्त्री-अप० जेहि, जेहिं < येभिः (ऋग्वेद) या * येभिम् । सम्बन्ध, पुं० नपुं०, पा० येसं, येसानं < येषां + नां, अप० जहां < * यसाम्, प्रा०, अप० जाण (म) < * याणाम, अप० जाहं, जाह। सम्बन्ध स्त्री०, अ० मा० यसिं अप० जहिं। सप्तमी पुं० अशो० येसु, अप०-जेसुं प्राकृत पैंगलम् में (2,151) में यह रूप * पाया जाता है। यह जेसु (< येषु) का वैकल्पिक रूप हो सकता है। आधुनिक हिन्दी में इसी जो (यत्) से जो, जिन्हें, जिनका आदि बना है।
क < किम-क्या, कौन-प्रश्न वाचक, और अनिश्चित सर्वनाम: