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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
भारत के प्राचीनतम आर्यों के विषय में जानकारी प्राप्त करने में समर्थ हो पाते हैं। इस रचना के आधार पर इस काल को इतिहास लेखकों ने 'पूर्व वैदिक काल' कहकर पुकारा है। इसके बाद तीन और संहिताएं लिखीं गयीं - यजुः संहिता, साम संहिता और अथर्व संहिता । इस काल को कुछ इतिहास लेखकों ने 'उत्तर वैदिक काल' कहकर पुकारा है। इस प्रकार वेद हमें संहिताओं अर्थात् संकलनों के रूप में मिलता है। आज वेद की 4 संहिताएं गिनने की चाल है ।
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छान्दोग्य उपनिषद् 7, 1, 2, में नारद सनत्कुमार को यह बताते हुए कि- मैंने सब विद्याएं पढ़ी हैं, गिनाता है - ऋग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेद सामवेदमाथर्वणं चतुर्थमितिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदंभगवन्, मैं ऋग्वेद को पढ़ाता हूं, यजुर्वेद को, सामवेद को, चौथे आथर्वण को और पाँचवे इतिहास पुराण को जो कि वेदों का वेद है | आचार्य कौटिल्य ने लिखा है (अर्थशास्त्र 1, 3, ) - सामर्ग्यजुर्वे - दास्त्रयी। अथर्ववेदेतिहासवेदो चेति वेदाः - साम, ऋक् और यजुर् वेद ये त्रयी हैं, ये तथा अथर्ववेद और इतिहास वेद, ये वेद हैं ।
'ऋच्' या ऋचा का अर्थ है पद्य, 'साम' का अर्थ है गीत । गीत का भी पढ़ना आवश्यक है । 'यजुष्' का अर्थ है पूजा वाक्य । वे वाक्य गद्य में हैं, उन्हें गद्य काव्य का संदर्भ कहा जा सकता है । कुछ ऋचाएं मिलकर एक सूक्त बनती हैं। 'सूक्ति' का अर्थ अच्छी उक्ति, सुभाषित, कविता आदि है। ऋग्वेद में हजार से कुछ अधिक सूक्त हैं जिन्हें दस मण्डलों में बाँटा गया है। सब मिलाकर उनमें साढ़े दस हजार ऋचाएं हैं। साम वेद में ऋक् संहिता की लगभग तिहाई है, और उसमें बहुत से साम ऐसे हैं जो ऋक् संहिता में आ चुके हैं। यजुः संहिता और भी छोटी है । वह 40 अध्यायों में बँटी है, जिनमें सब मिलाकर लगभग दो हजार यजुष् हैं । ऋचाओं, सामों और यजुषों के लिए साधारण शब्द 'मन्त्र' हैं।
प्रत्येक सूक्त या अध्याय के आरम्भ में प्रायः यह उल्लेख रहता है कि उसकी अमुक ऋचा या यजुष् का अमुक ऋषि और