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भारतीय आर्य-भाषा
कि भारत पर आर्यों के लगातार दो आक्रमण हुए। दो वर्गों में आक्रमणकारी आर्यों की दो विभिन्न भाषाएँ थीं, फिर भी उन दोनों भाषाओं में घनिष्ठ सम्बन्ध था । ये दोनों आक्रमण एक साथ न होने के कारण लम्बी अवधि में दोनों वर्गों के आर्यों के जुदा-जुदा रहने के कारण दोनों की भाषाओं में अन्तर का हो जाना स्वाभाविक था। प्रथम आक्रमणकारियों ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया और यहाँ अनार्यो को परास्त कर पंजाब एवं मध्य देश में जा बसे । इन आर्यों के साथ इनकी भाषा भी आ गयी थी। दूसरे वर्ग के आर्यों ने जब भारत पर आक्रमण उसी पश्चिमी दिशा से किया तब इनकी मुठभेड़ पूर्वागत आर्यों से हुई। इन पूर्वागत आर्यों को अपना स्थान छोड़कर तीन दिशाओं की ओर जाने के लिए बाध्य होना पड़ा - पूर्व, दक्षिण तथा पीछे पश्चिम । बाद के आए हुए आर्यगण मध्यदेश में बस गए। पंजाब की सप्त सिंधु आदि नदियाँ तथा गंगा और यमुना का कांठे भाग इनका निवास स्थान हुआ । यहीं पर वेदों की रचना हुई। इनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन माना जाता है । शौरसेनी प्राकृत तथा संस्कृत यहीं की भाषाएँ थीं। इस तरह ये आर्यगण उत्तरी पश्चिमी सीमान्त प्रदेश से आगे बढ़कर सप्त सिंधु (आधुनिक पंजाब) में अपना आधिपत्य स्थापित कर शनैः शनैः पूर्व की ओर बढ़ते गए। मध्यदेश, काशी, कोशल, मगध, विदेह, अङ्ग-बङ्ग तथा कामरूप आदि स्थानों में अनार्यों को परास्त कर अपना राज्य स्थापित किया । शनैः शनैः आर्यों ने समस्त उत्तरा पथ में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद आर्यो ने अपना प्रवेश दक्षिण भारत में भी करना प्रारम्भ किया ।
आर्यों की प्राचीनतम रचनायें
आर्यों की प्राचीनतम रचना ऋग्वेद है। वेद को संहिता भी कहते हैं। इसके विषय में कहा जाता है कि यह विभिन्न ऋषि परिवारों के सूक्तों का संग्रह है। इस संकलन का नाम ऋक् संहिता या ऋग्वेद संहिता पड़ा । वेदाध्ययन परायण ऋषियों ने श्रुति परम्परा से ऋक् संहिता को अविरल रूप से सुरक्षित रखा। इससे हम
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