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रूप विचार
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अम्हहँ < सं० अस्माकम् के सदृश है। अप० अम्हहु < अस्म + * सस (सम्बन्ध० एक व० या * अस्मभः) प्रा० अम्हाण (म्) माग० अस्माणम् = अस्मभ्यम्; अप० अम्हहा < * अस्म + साम (सम्बन्ध ब० व०) पै०-अम्हं, प्रा० अम्हह (म्), अप०-अम्ह < * अस्माम् या अस्मत् । पिशेल (8419) ने अम्हहं की उत्पत्ति * अस्मासिम से मिलते जुलते शब्द से मानी है।
"हम्मारो-हम्मारी' का विकास इस क्रम से हुआ है :अस्म-कर > अम्ह-अर > हम्म-अरउ > हम्मारो, अस्म-करी > अम्ह-अरी > हम्म-अरी > हम्मारी
इसी का खड़ी बोली में हमारा-हमारी तथा राजस्थानी में म्हारो म्हारी रूप पाये जाते हैं। पिशेल (प्राकृत भाषों का व्याकरण 8434) ने इनका विकास * म्हार > * महार > * हमार के क्रम से माना है। मध्यम पुरूष = तुम < युष्मद् शब्द के रूप एक०
बहु० प्र० तुहुँ
तुम्हे, तुम्हइँ पइँ,तइँ तृ० . पइँ, तइँ
तुम्हेहिँ च०, पं०, ष० तउ, तुज्झ, तुध्र तुम्हहँ सं०
पइँ, तइँ तुम्हासु (1) कर्ता कारक एक वचन में तुहुँ रूप होता है। संस्कृत में त्वं होता है। प्राकृत में तुम और ठक्की में तुहं होता है। पिशेल तथा तेस्सितोरि ने तुहुँ को सं० त्वकम् से व्युत्पन्न माना है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 'अस्मद् के मिथ्या सादृश्य पर बनाये गये कल्पित रूप * तुष्म का विकास है :- अस्म - अह :- * तुष्म - तुह । तुह (म्), तुहु <* तुषाम्, * तुसुम् । ब० व० में तुम्हे, तुम्हइँ रूप होता है। इसकी व्युत्पत्ति तुम्हे < * सं० तुष्मे से मानी जाती है।