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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
दोष-हुँती विरमइ=दोष से विराम लेता है (इन्द्रि० 97) अम्हाँ-ही हूँती भूखी-हमसे भी भूखी (आदि च०) (4) द्विउ परसर्ग
हिउ (सं० स्थित) का प्रयोग पंचमी के अर्थ में हुआ है। हिअय विउ जइ नीसरहि 8/4/438 (हृदय में स्थित या हृदय से)। अम्हासु ट्ठिअं (4/8/381), तुम्हासु ट्ठिअं (हे0 8/4/374)
पाहड़ दोहा में भी द्विअ का प्रयोग पाया जाता है। यहाँ विउ का प्रयोग 'स्थित' के अर्थ में हुआ है :
णिल्लक्खणु इत्थी बाहिरउ अकुलीणउ महु मणि ठियउ। तसु कारणि आणी माहू जेण गवं गउ संठियउ।।
__ (पाहुड़ दोहा 99) करि हिउ जाँह (पाहुड़ दोहा-102) अहवा तिमिरुण ठाहरइ सूरहु गयणि ठिएण
(सावयवधम्मदोहा 132) (सूर्य के गगन में स्थित होने पर तिमिर नहीं ठहर सकता) दोहा कोशों में भी थिय का प्रयोग पाया जाता है। पत्त-सउत्थअसउ-मुणाल थिय महाँ सुहवासे'
(काण्हदोहा कोश 5) वेण्णि रहिय तस णिच्चलथाइ (कण्हदोहा कोश 13)
इन उद्धरणों में थिय (स्था का प्रयोग पंचमी के अर्थ में नहीं हुआ है। अन्य दोहा कोशों के दोहों में भी थिय का प्रयोग इसी तरह से किया गया है। इस थिय या ट्ठि स्था का प्रयोग पंचमी या सप्तमी के अर्थ में पुरानी हिन्दी में नहीं पाया जाता। (5) संबंध परसर्ग-केरअ, केर आदि
संबंध परसर्ग केरअ, केर आदि का प्रयोग षष्ठी विभक्ति के अर्थ में पाया जाता है। जसु केरऍ हुंकार डएँ (हे० 8/4/422)