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________________ 286 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि होता है। प्राचीन भारतीय आर्य भाषा में कर्ता० एवं कर्म० में नपुंसक लिंग के विशेष रूपों को छोड़कर शेष रूप पल्लिंग की भाँति होते हैं। प्राकृत में भी यही रीति अपनाई गयी है, अपभ्रंश में भी केवल प्र० बहुवचन जस् एवं द्वि० बहुवचन शस् के अपने रूप इं 31 होता है। शेष रूप पुल्लिंग की भाँति होते हैं। एकवचन बहुवचन प्र० कमलु, कमला, कमल कमलाई, कमलई द्वि० कमलु, कमला, कमल कमलाई, कमलई शेष रूप पुल्लिंग के समान होते हैं। कर्ता कारक एवं कर्म कारक एक वचन में कमल+ सि, अम् दोनों का लोप होकर कमल एवं कमला रूप होता है। संस्कृत एवं प्राकृत में अनुस्वार होता है। अपभ्रंश में वह अनुस्वार भी समाप्त हो गया। बहुवचन में कमल+जस्, शस के स्थान पर इं32 होकर कमलई रूप होता है। अतिरिक्त सभी रूप पुल्लिंग की तरह होते हैं। अपभ्रंश के नपुंसक लिंग में ककारान्त शब्दों के परे यानी संस्कृत कृदन्त स्वार्थिक क प्रत्यय से बने हुए अकारान्त शब्दों के परे सि और अम् को उं आदेश होता है तुच्छ + क = तुच्छ + सि, अम् को उं होकर तुच्छउं रूप होता है। संस्कृत प्रसृतक का पसरिअउं रूप होता है। तुच्छकं > तुच्छउं, सं० प्रसरितकं > पसरिअं > पसरिअउं । अपभ्रंश नपुंसक लिंग के सभी शब्दों का रूप संस्कृत कृदन्त क प्रत्ययान्त को छोड़कर, कमल की भाँति होता है। इकारान्त और उकारान्त नामों के रूप पुल्लिंग और नपुंसक लिंग में कोई भेद नहीं होता । नपुंसक लिंग में वारिइं, वारीइं, महुई, महूई प्रथमा और द्वितीया बहुवचन में रूप होते हैं। मूल इकारान्त, उकारान्त वाले शब्दों में कभी-कभी य < क स्वार्थिक प्रत्यय लगाकर अकारान्त नाम बनाया जाता है : सम्माइट्ठिउ, जोइया, जोइय, दोनों शब्द रूप क्रिया के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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