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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
अन्तिम-अम् या तो समाप्त हो जाता है या उ हो जाता है-नर, नरू < नरं < नरम्, वर, वरु < वरम्।
इसी तरह अन्तिम अः का विसर्ग या तो समाप्त हो जाता है या उ (<-०) हो जाता है-नर, नरु < नरः, पिअ, पिउ, < प्रियः ।
पुल्लिंग और स्त्रीलिंग का भेद बताने का रूप स्पष्ट है-जुवइह (षष्ठी ए० व० का युवति), माअह (षष्ठी ए० व० मातृ)।
नवीन सर्वनाम के रूप इस तरह हैं-एह (यह), जेह (वह क्या), केह (क्या) तीनों लिंगों में होता है।
इमु < इदम्; केमु, किव = कथम्; जिम, तिम = यादृक, तादृक; मइ (म्), तइ (म्), अम्ह, तुम्ह = हम, तुम (एक वचन में भी प्रयुक्त होता है) अम्हार, तुम्हार=अस्मदीय-(मदीय-), युष्मदीय (त्वदीय-) आदि।
क्रिया रूपों में निम्नलिखित प्रत्यय होते हैं। (लोट् और विधि में भी) (i) उत्तम पुरूष-ए० व०-हुं, मि, ब० वo-म (ii) मध्यम पु०-ए० व०-इ, उ,-हि०, ब० व०-ह; (iii) अन्य पु० ए० व० – (अ) इ-अ, ब० व० न्ति,-हि।
संज्ञा और क्रिया के लिए मुहावरे भी प्रयुक्त होते हैं।
क्रिया और संज्ञा के नये रूपों के शब्द समूह स्पष्ट हो जाते हैं-वट (वद) मूर्ख, कल्ल (कल्ली) = कल, खोज्ज-खोज, काल (बहिर), वुड-डूबना, वड्ड-बड़ा, आदि।
संदर्भ .
1. प्राकृत व्याकरण-845