________________
अपभ्रंश भाषा
131
'ही'; बहुत से कारकों का काम देने लगी, संस्कृत की तरह लकीर ही नहीं पीटती गयी। . . (5) संस्कृत में पूर्व कालिक का एक 'त्वा' ही रह गया. और 'य' मिट गया, इधर 'त्वान' और 'त्वाय' और 'य' स्वतन्त्रता से बढ़ आये। पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने वैदिक भाषा से अपभ्रंश का सीधा सम्बन्ध दिखाया है।
अपभ्रंश का एक दूसरा भी रूप है जिसे 'विभाषा' कहते हैं। आधुनिक कथ्य भाषाओं का विकास इन्हीं अपभ्रंशों से हुआ है। ये अपभ्रंश स्थानीय बोलियों का प्रतिनिधित्व करती थीं। ब्राचड़ अपभ्रंश से सिन्धी तथा लहँदा बोली का सम्बन्ध जोड़ा जाता है। लहँदा केकय प्रदेश की बोली थी। इस प्रदेश का एक हिस्सा 'दर्दीय भाषा' से भी प्रभावित रहा। वैदर्भ तथा दाक्षिणात्य अपभ्रंश से भी बहुत सी विभाषायें सम्बन्धित रही होंगी। इसी विदर्भ प्रदेश और बरार को संस्कृत में महाराष्ट्र कहते थे। यहाँ की अपभ्रंश से आधुनिक मराठी का सम्बन्ध जोड़ा जाता है। दाक्षिणात्य प्रदेश के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक औड्र तथा औत्कल अपभ्रंश का क्षेत्र था। इसीसे उड़िया भाषा की उत्पत्ति मानी जाती है। बनारस से पूर्व वाले प्रदेश में मागध अपभ्रंश फैला था। आधुनिक बिहारी भाषाओं का प्रादुर्भाव इसी से माना जाता है। मागधी अपभ्रंश पूर्वी प्राकृत से उत्पन्न मानी जाती है। इसके पूर्व में गौड़ या प्राच्य अपभ्रंश का क्षेत्र था। इसी से बंगला एवं असमिया की उत्पत्ति हुई है। डा० ग्रियर्सन का कहना है कि 'वस्तुतः मागध अपभ्रंश का प्रसार पूर्व तथा दक्षिण में तीन ओर माना जा सकता है। यह उत्तर पूर्व में उत्तरी बंगला और असमी, दक्षिण में उड़िया एवं इन दोनों के बीच में बंगला के रूप में विकसित हई है।' डॉ० सुनीति कुमार चाटुा 00 ने भी इसी तरह का विचार व्यक्त किया है। उनका कहना है कि म० भा० आ० में हम साहित्यिक अपभ्रंश को स्थान देते हैं। इन साहित्यिक अपभ्रंशों का आधार मुख्यतया अनुमान के आधार पर काल्पनिक कथ्य अपभ्रंश भाषा का स्थान है जहाँ पूर्ववर्ती प्राकृत समाप्त हो जाती है और भाषा