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पतञ्जलि
तृतीय- अध्याय अपभ्रंश भाषा
अपभ्रंशविषयक निर्देश
अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ च्युत या संस्कृत शब्द का बिगड़ा हुआ रूप माना जाता था । पतञ्जलि ( ई० पू० 2 शती) ने इसके लिये दो प्रकार के शब्द प्रयुक्त किये हैं- ( 1 ) एक अपशब्द (2) और दूसरा अपभ्रंश, जो कि संस्कृत का विभ्रष्ट या अपभ्रष्ट रूप है । संस्कृत शब्द के विकृत या अपशब्द रूप गावी, गोणी, गोता आदि शब्द सामान्यतया अपशब्द या अपभ्रंश कहकर पुकारे जाते थे।' वैयाकरणों ने संस्कृत से इतर सभी शब्दों को अपभ्रंश कहकर पुकारा है क्योंकि संस्कृत के विकृत रूपों या इतर शब्दों के लिये यही नाम प्रतिनिधित्व करता था ।
भर्तृहरि
'वाक्यपदीयम्' के रचयिता भर्तृहरि ने महाभाष्यकार पतञ्जलि के पूर्ववर्ती व्याडि नामक आचार्य के मत का उल्लेख करते हुए अपभ्रंश का निर्देश किया है। उनका कहना है कि शुद्ध उच्चारण में असमर्थता या उच्चारण के प्रति असावधानी के कारण शब्दों के विकृत हो जाने से अपभ्रंश की उत्पत्ति हुई । वैयाकरणों ने संस्कृत से अपभ्रंश की उत्पत्ति के विषय में यही विश्लेषण किया है । व्याडि का कहना है कि अपभ्रंश का उद्भव संस्कृत से है । इस कारण यह स्वतन्त्र भाषा के विकास का द्योतक नहीं है। ये संस्कृत के अपभ्रष्ट और मिश्रित शब्द हैं। उसका कारण