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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
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बाल महिलादि सुबोधं सकल निबन्धन भूतं वचनमुच्यते । मेघनिर्मुक्त जलमिवैक स्वरूपं तदेव च देशविशेषात् संस्कार करणाच्च समासादित विशेषं सत् संस्कृताद्युत्तर विभेदानाप्नोति । अतएव शास्त्रकृता प्राकृतमादौ निर्दिष्टम्, तदनु संस्कृतादीनि। पाणिन्यादि व्याकरणोदित शब्दलक्षणेन संस्करणात् संस्कृतमुच्यते। वाक्पतिराज :सयला ओ इमं विसन्ति एत्तोय ऐति वायाओ।
एन्ति समुदं चियणेति साथ राओच्चिय जलाई।। 10. यद्योनिः किल संस्कृतस्य सुदृशां जिहासु यन्मोदते,
यत्र श्रोत्र पथावतारिणि कटुर्भाषाक्षराणां रसः । गद्यं चूर्ण पदं पद रतिपतेस्तत् प्राकृतं यदवचस्तल्लाटांल्ललिताङ्गिं! पश्य नुदती दृष्टेर्निमेष व्रतम् ।
राजशेखर बालरामायण (48-49) 11. प्राकृत भाषा, पृ० 18-प्रकाशन-श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस
हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी। 12. हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास पृ० 60 पर डा० तिवारी
ने सविस्तार विभिन्न विद्वानों के मतों का वर्णन किया है। 13. भारतीय आर्य भाषा और हिन्दी पृ० 188, प्रकाशन-राजकमल
प्रकाशन, दिल्ली। 14. पालि महाव्याकरण भिक्षु जगदीश कश्यप का। 15. विल्सन फाइलोलोजिकल लेक्चर्स पृ० 48। 16. प्राकृत मार्गोपदेशिका, पृ० 13, गुर्जर ग्रन्थ रत्न कार्यालय गांधी
रास्ता, अहमदाबाद सन् 1947। 17. भरत मुनि ने जिस कथित भाषा का उल्लेख किया है वे हैं-मागधी,
अवन्तिजा, प्राच्या, शौरसेनी, अर्धमागधी, बाहलीका और दाक्षिणात्या-ये 7 प्रान्तीय भाषाएं थीं।