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एक दीप आदित्य बन गया (आचार्य नानेश- संक्षिप्त परिचय) एक छोटा दीप, एक नान्हा दीप, हर रहा है तिमिर जग का
सहज शान्त अभीत! छोटा सा दीपक, गाँव की मिट्टी की सोंधी गंध से सुवासित, सुसंस्कारों के नेह से सिंचित, निर्मल वर्तिका से सुसज्जित ज्योतिर्धर युगपुरुष श्री जवाहराचार्य के सुशासन में युवाचार्य श्री गणेशाचार्य से प्रकाश ले अपने चहुं ओर परिव्याप्त निबिड़ अंधकार को विदीर्ण करने हेतु प्रज्वलित हो उठा। अग्निज्योति, चन्द्रज्योति, रविज्योति की जाज्वल्यमान परम्परा में सम्मिलित होने का क्षीण दीपज्योति का दुस्साहस ! बलिहारी उस आत्मबल की जो दीपक से दीपक जला कर अमानिशा को मंगलकारी दीपावली में परिवर्तित कर देने की क्षमता रखता है ! तब यदि नन्हा दीपक, 'नाना' दीपक, प्रकाश की अजस्र धारा प्रवाहित करने हेतु, नानादिशोन्मुखी हो, नानाविध, सर्वजनहिताय आचार्य नानेश बन गया तो आश्चर्य कैसा? शास्त्रकारों ने कहा भी है
जह दीवो दीवसयं पइप्पए जसो दीवो ।
दीवसमा आयरिया दिव्वंति परं च दिवंति ।। और फिर बाल भगवान की परम्परा कोई नई भी तो नहीं! प्रलय पारावार में वट वृक्ष के पत्र पर सहज निद्रामग्न बालमुकुंद साक्षात् ब्रह्म ही तो थे जिन्हें श्रद्धालुजन भक्तिभाव से नमन करते हैं—'वटस्य पत्रस्य पुटः शयानम् बालमुकुन्दम् शिरसा नमामि' और उन्हीं के संरक्षण में नव सृष्टि का विकास संभव हुआ था। अज्ञानांधकार के हरण में महत्त्व वय, आकार, रूप अथवा वर्ण का नहीं होता—क्योंकि 'उत्तमत्तं गुणेहि चेव पविजई'। उत्तमता गुणों से प्राप्त होती है और गुणों की ही पूजा होती है—'गुणः पूजास्थानं न च लिंग न च वयः'। यही देखकर तो पू. आचार्य गणेशीलाल जी म. सा. ने पूर्ण आश्वस्तिभाव से आठवें पाट के अधिष्ठाता का पद 'नानालाल' को देने की पूर्वपीठिका की दिशा में उन्हें युवाचार्य के पद पर अभिषिक्त किया था भले ही जननी शृंगार बाई का ममताव्याकुल संशयशील हृदय प्रार्थना करता रहा हो—'ई घणा भोला टाबर है, याँ पे अतरो मोटो बोझ मती नाखो।'
परन्तु बोझ डालता कौन है ? दीपक से कोई कहता है कि चतुर्दिश अंधकार को विदीर्ण करने का बोझ तू उठा! वह भार तो सूर्य का उत्तराधिकारी होने के कारण प्रज्वलित दीपक पर स्वतः ही आ जाता है। दीपक का अर्थ ही है प्रकाश और प्रकाश का अर्थ है तमहरण का संकल्प। इस संकल्प की पूर्ति हेतु दीपक का कर्त्तव्य बन जाता है कि वह अपनी प्रज्वलित वर्तिका से दीपक के बाद दीपक प्रदीप्त कर अवली में सजाता जाये जिससे सम्पूर्ण जगत् प्रकाशमान हो उठे। इसी