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अध्याय एक आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
आत्म-समीक्षण
'जे अण्णणदंसी, से अण्णणारामे,
जे अण्णणारामे, से अण्णणदंसी' जो मनुष्य समतामयी आत्मा के दर्शन करने वाला होता है, वह अनुपम प्रसन्नता में रमण करता है।
और जो अनुपम प्रसन्नता में रमण करता है, वह समतामयी आत्मा के दर्शन करने वाला होता है।