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हूँ ४११, मैं शुद्ध, बुद्ध, सिद्ध हूं ४१२, मैं अनश्वर ओऽम् हूं ४१६, सदासद् संग्राम ४१८, अन्तिम विजय मेरी होगी ४१६, नवम सूत्र और मेरा संकल्प ४२०
११. अध्याय ग्यारह :
समता की जययात्रा
जीवन का उद्भव और संचरण ४२६, जीवन विकास का गतिक्रम ४२८, यह जीवन क्या है ? ४३०, समता का मूल्यांकन ४३२, विषमता का मूल व विस्तार ४३५, अधिक जड़ग्रस्तता : अधिक विषमता ४३७, समता की दृष्टियां ४३६, समता का दार्शनिक स्वरूप ४४१, समता का व्यवहार्य पक्ष ४५२, समताचरण के तीन चरण ४५६, समता समाज की वैचारिक रूपरेखा ४६१, समता की जय यात्रा ४६३
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