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महल ११५, आत्म-नियंत्रण का धरातल ११६, आत्मालोचना का क्रम ११७, आत्म समीक्षण से स्वरूप दर्शन १२०, परिमार्जन, संशोधन व संशुद्धि १२३, मिथ्यात्व-सम्यक्त्व संघर्ष १२४, समग्र आत्माओं की एकरूपता १२८, दूसरा सूत्र
और मेरा संकल्प १२६ ४. अध्याय चार :
तीसरा सूत्र आत्मा का ज्ञाता व दृष्टाभाव १३४, तर्क और आस्था का अन्तर १३५, आस्था की अनिवार्यता १३८, विश्वसनीयता के प्रतिमान १३६, सिद्धान्त व गुणमूलक संस्कृति १४१, आचरणदर्शिका अहिंसा १४३, सत्य भगवान् होता है १४५, अस्तेय की ओजस्विता १४६, प्रभावकतापूर्ण ब्रह्मचर्य १५२, अपरिग्रहवादी साम्यता १५५, सर्वांशतः सिद्धान्तनिष्ठ जीवन १५६, सिद्धान्तों का आंशिक पालन १६४, ज्ञान बिन क्रिया, क्रिया बिन ज्ञान १७०, निर्विकारी स्वरूप की ओर १७१, तीसरा सूत्र और मेरा संकल्प १७२ अध्याय पांच : चौथा सूत्र सुज्ञता और संवेदनशीलता १७६, तुच्छता जड़ग्रस्तता से १७७, तुच्छता से स्वरूप विकृति १७६, अष्ट कर्मों के बन्धन १८२, ज्ञान शक्ति के आवरण १८६, आवृत्त दर्शन-शक्ति १८८, वेदना की शुभाशुभता १६०, महाबली कर्मराज मोहनीय १६१, मोह का समीक्षण १६३, आयुष्य के बंधन १६४, नाम की विचित्रताएँ १६६, गौत्र की नीचोच्चता २००, अवरोधी अन्तराय २०१, जो जैसा करता है, वैसा भरता है २०२, आत्मीय समानता का संदेश २०४, तुच्छता बनाम पुरुषार्थ २०५, लोकोपकार से महानता २०७, कर्म बंध, क्षय एवं मुक्ति २०६, 'मैं' में समाहित सर्वहित २१२, सर्वदा और सर्वत्र सुख और समाधि २१३, “एगे आया' की दिव्य शोभा २१४, चौथा सूत्र और मेरा संकल्प २१७ अध्याय छः : पांचवां सूत्र भौतिक सुखों की कामनाएँ २२३, विषयान्ध इन्द्रियों का जाल २२४, कषाय विकारों की मलिनता २२६, प्रज्वलनशील क्रोध २३०, विनम्रता विनाशक मान २३१, मायाविनी माया २३२, जीर्ण न होने वाला लोभ २३३, कषाय से मुक्त होना ही मुक्ति २३४, बंध और मोक्ष का कारण मन २३६, यह है मन के लिये दर्पण २३६, त्रिविध योग व्यापार २४२, मानवीय मूल्यों का ह्रास २४३, सामाजिक से समभाव साधना २४६, शुभ, शुद्ध और भव्य भावनाएँ २४८, क्या यहाँ सब अस्थिर नहीं ? २५२, मेरी शरणहीनता २५३, संसार के रंगमंच पर २५४, एकत्व की अवधारणा २५५, शरीर और आत्मा की भिन्नता २५५, चारों ओर गंदगी ही गंदगी है २५६, शुभाशुभ योग व्यापार २५७, कर्म-निरोधक
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