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अनुक्रम
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१. अध्याय एक:
आत्म-समीक्षण अन्तर्यात्रा का आनन्द ३, समीक्षण ध्यान साधना ४, समीक्षण का द्वितीय चरण ८, भविष्य के निर्धारण का चरण ६, सहजता जीवन का अंग बने ११, शक्ति के केन्द्र के प्रति सावधानी १४, अहंभाव का विसर्जन १६, एकावधानता का प्रयोग १६, समीक्षण शरीर तंत्र का २२, श्वास समीक्षा २४, श्वासानुसंधान २६, प्रबलतम शक्ति संकल्प २८, सद्विचार की शक्ति २८, समीक्षण की पूर्णता २६, चिन्तन आचरण में उतरे ३१, आत्म-रमण की अवस्था ३३, नव-सूत्रों की
विशेषता ३६ २. अध्याय दो :
पहला सूत्र आह्वान अपनी चेतना का ४२, 'मैं' की आनन्ददायी अनुभूति ४३, यह भटकाव अनादिकालीन है ४४, आखिर यह संसार है क्या ? ४७, संसार के संसरण में 'मैं' ५०, मूल्यात्मक चेतना की अभिव्यक्ति ५२, समता के समरस में ५४, जीवनों की क्रमिकता ५५, मैं कहाँ से आया हूँ ? ५६, यह दुर्लभ मानव-तन ५७, अन्य दुर्लभ प्राप्तियाँ ५६, मानवीय चिन्तन के मोड़ ६१, सुख-दुःखानुभव का समीक्षण ६३, संवेदनशीलता का अनुभाव ६५, मनुष्य की क्रियाओं के प्रयोजन ६७, क्रियाओं की विपरीतता ६८, वैयक्तिक एवं सामाजिक प्रभाव ७०, स्व-स्वरूप का विस्मरण ही मूर्छा ७०, अज्ञान, आसक्ति और ममत्व ७२, सांसारिकता के बीज : राग-द्वेष ७४, आकाश के समान अनन्त इच्छाएँ ७५, तृप्ति व अतृप्ति की कुंठाएँ ७६, प्रमाद की प्रमत्तता ७८, विकथा प्रमाद ८०, आध्यात्मिक उत्प्रेरणाएँ ८०, जीवन
की एक नई व्याख्या ८१, पहला सूत्र और मेरा संकल्प ८३ ३. अध्याय तीन :
दूसरा सूत्र चेतना की प्रबुद्धता व जागृति ६०, मूल स्वरूप की संस्मृति ६१, सत्य का विपर्यय है मिथ्या ६२, मोह ही मिथ्यात्व का मूल कारण ६४, एक दृष्टि संसार से मोक्ष तक ६५, जीव और अजीव की प्रमुखता ६६, कर्म-बंध का विश्लेषण १०१, कर्मों का आगमन, अवरोध एवं क्षय १०३, पाप-पुण्य मीमांसा १०५, मोक्ष का चरम चरण ११०, सम्यक्त्व की प्रकाशकिरणें ११२, सम्यक्त्व की ईंट पर मोक्ष का
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