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को, किसी अपराधी को मिले कारागार के दंड की अवधि के समान माना गया है। जैसे दंडाज्ञा की नियत अवधि के पहले कारागार से छूटा नहीं जा सकता है वैसे ही आयु कर्म के कारण जीव नियत समय तक अपने प्राप्त शरीर में बंधा रहता है। अवधि पूरी होने पर ही वह उस शरीर को छोड़ता है परन्तु उसके पहिले नहीं। अतः जिस कर्म के रहते प्राणी जीता है तथा पूरा होने पर मरता है उसे आयु कर्म कहते हैं। आयु कर्म के प्रभाव से ही जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है अथवा स्वीकृत कर्म से प्राप्त नरक आदि दुर्गति से निकलना चाहते हुए भी जीव को आयु कर्म उसी गति में रोके रखता है। यह आयु कर्म प्रति समय भोगा जाता है या जिसके उदय में आने पर भव (जन्म) विशेष में भोगने लायक सभी कर्म फल देने लगते हैं।
आयु कर्म के चार भेद कहे गये हैं—(१) नरकायु-इस आयु बंध के चार कारण हैं - (अ) महारंभ-बहुत प्राणियों की हिंसा हो—इस प्रकार के तीव्र परिणामों से कषायपूर्वक प्रवृत्ति करना, (ब) महा परिग्रह वस्तुओं पर अत्यन्त मूर्छा रखना, (स) पंचेन्द्रिय वध-पंचेन्द्रिय (पांचों इन्द्रियों से सम्पन्न) जीवों की हिंसा-हत्या करना तथा (द) कुणिमाहार-मांस आदि का आहार करना। इन चार कारणों से जीव नरकायु का बंध करता है। नरकायु कार्मण शरीर प्रयोग नाम कर्म के उदय से भी जीव नरकाय का बंध करता है। नरकाय जघन्य दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट तैतीस सागरोपम की है।
(२) तिर्यंचायु—इस आयुबंध के भी चार कारण हैं- (अ) माया—(कुटिल परिणामों वाला) जिसके मन में कुछ और हो और बाहर कुछ और अर्थात् जो विषकुंभ –पयोमुख की तरह ऊपर से मीठा हो और भीतर से अनिष्ट चाहने वाला हो। (ब) विकृति वाला–ढोंग, आडम्बर आदि करके जो दूसरों को ठगने वाला हो। (स) जो झूठ बोलने वाला हो। (द) झूठे तोल झूठे माप वाला—खरीदने के लिये बड़े और बेचने के लिये छोटे बाट नाप रखने वाला। शोषण सम्बन्धी श्रम-चोरी का समावेश इसी में होता है। ऐसे जीव तिर्यंच (पशु) गति के योग्य कर्म का बंध करते हैं। तिर्यंचायु कार्मण शरीर प्रयोग नाम कर्म के उदय से भी जीव तिर्यंचायु का बंध करता है। तिर्यंच की आयु जघन्य अन्तर्मुहुर्त तथा उत्कृष्ट तीन पल्लोपम की है।
(३) मनुष्यायु-मनुष्य जन्म भी चार प्रकार के कारणों से प्राप्त होता है—(अ) जो भद्र–सरल प्रकृति (स्वभाव) वाला हो, (ब) जो स्वभाव से ही विनीत हो, (स) जो दया और अनुकम्पा के परिणामों (भावो) वाला हो तथा (द) जो मत्सर अर्थात ईर्ष्या-डाह न करने वाला हो। ऐसा जीव मनुष्यायु योग्य कर्म बांधता है। मनुष्यायु कार्मण शरीर प्रयोग नाम कर्म के उदय से भी जीव मनुष्य जन्म की आयु का बंध करता है। मनुष्य की आयु जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट तीन पल्लोपम की है।
__(४) देवायु–देवायु बंध के भी चार कारण बताये गये हैं— (अ) जो सराग संयम का धारक रहा हो, (ब) जिसने देश विरति श्रावक धर्म का पालन किया हो, (स) अकाम निर्जरा अर्थात् अनिच्छापूर्वक पराधीनता आदि कारणों से कर्मो की निर्जरा करने वाला, तथा (द) बाल भाव से विवेक के बिना अज्ञानपूर्वक कायाक्लेश आदि तप करने वाला। ऐसा जीव देवायु के योग्य कर्म बांधता है। देवायु कार्मण शरीर प्रयोग नामक कर्म के उदय से भी जीव देव की आयु का बंध करता है। देवायु जघन्य दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट तैतीस सागरोपम की है।
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