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________________ के ऊदे बडे बडे संयम छोड गये बुटेराय कीस गीणती मै हे ? कर्मा की विचीत्र गती हे । घडी घडी में 'परिणाम ओर के ओर हो जाते हे । पहिले तो अछाहि था । परंतु अब तो संयम छोड दीया । अरु सरधावी जैन की नहीं रही । आचार्य उपाध्यांका निंदक हे । इत्यादिक वात सुणके तपस्वीजी चुपके होय रहे । अनेक निंद्या करे तब स्यालकोट के भाइयां को तपस्वी बोल्या - बूटेराय धर्म ते डीग गया हे । उसको मेनें एकवार मीणा हे । जेकर उपदेश दीयते खडा होय जावे तो अछी वात हे । इम विचारी स्यालकोटते 'टुरके कुजरावाले मेरे पास आया । सो मेरी अरु तपस्वी की चरचा चार पांच दीन होइ । तपस्वीजी की अरु मेरी सरधा तथा परुपणा एक सरीखी हो गई । कुछ भेद रह्या नथी परंतु मेरे को कह्या - स्वामीजी ! मेने फेर स्यालकोट जाणा हे । मेरे को स्यालकोटीए कहेगें - तुमको भरमाय लीया हे । हमारे साथ चरचा करे तो तुमानुं मालुम पडे-कौण सच्चा हे अरु कौण जूठा हे ? इस वास्ते आप इकवार स्यालकोट चलो । तिवारे मेंने कह्या-अछी वात हे हम स्यालकोट चलागे । फेर मेरे को लेके तपस्वी स्यालकोट में गया । उहां मुखपत्तिकि चरचा होइ । सुदागरमल्ल चरचा में बंध पड्या । पीछे बोल्या - हम कौणसे सूत्र पढेहां । हमारे गुरांके साथ चरचा करो । जेकर साधु तुमारी सरद्वा प्रमाण करेगे तो हम बी प्रमाण कर लेवांगें । तिवारे अमने सुदागरमल्लको कहिया - भाइसाहिब । हमारी तुमारी चरचा तो तपस्वीजीनें सुण लीती' हे । अब तुमारे गुरांकी चरचा होवेगी तब देखी जावेगी । तिवारे तपस्वीजीने कह्या-स्वामीजी ! आप सुखे विचरो । मेनें जौनसी चरचा सुणणीथी सो सुण लीधी हे । आप मेरे धरमाचार्य हो । अरु में आपका श्रावक हां । तपस्वी तो स्यालकोट में रह्या । में उहांते विहार कर आया । फेर केतलाइक काल और खेत्रा में विचरी पीछें एक चेले को साथ लेके स्यालकोट गया । उहां मेरे चेलेका १ परिणाम । २. देने से । ३ निकलकर । ४ चुप हो गया । ५ सुन ली है । मोहपत्ती चर्चा * १४
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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