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________________ હે જંબુ ! દુપ્પહસૂરીશ્વરજી સુધી યાવત્ બકુશ અને કુશીલોથી શાસન ચાલશે. તે ભગવતી સૂત્રમાં કહ્યું છે. બકુશ ઉત્તર ગુણ પ્રતિસેવી છે. ઉત્તર ગુણમાં દોષો લગાડે છે. કુશીલના બે ભેદ છે (१) दुषाय डुशीस (२) પ્રતિસેવના કુશીલ મૂળ તથા ઉત્તર ગુણોમાં દોષ લગાડે છે. सा.पा. ७१ संगयूलिअ : तारिसाए दिट्टिए विहरंता णं णो आणाविराहगा सगणे परगणे संविगा साहुणीलंता ममावि हीलिस्सति ॥ ताद्दश दीट्ठी अंगीकार करने वाले साधु विराधक नही । काल प्रमाणे, आपनी सगती प्रमाणे खप करता मुनी आराधक है । ऐसे वैरागी मुनी को जो कोई हीले निंदे तिने मुझको पण निंद्या इत्यर्थ । एह समान । मात्र महावीरस्वामी के तीर्थ की बात कही । विशेष सूत्र मध्ये जोई जो । अब जोणसें भस्मग्रह उत्तरदेनें बल कीया संघ को उत्तरदेनें उपद्रव किया । तिसके प्रभाव करके आपमती संघ को दुखदाइ भीख्यारी आपमतीयाने श्री संघ उपर मुनिका लिंग धारके चढाइ करी । घणे संघ को हण दिया । आपणे सेवक कर लीये । इस कालमें वीर प्रभु के साधु थें परंतु भस्म ग्रह केवल करके उदे २ पूजा नहि थी । शीथील विहारीयाक पूजा अवनालो जब घणी होय रही थी । परंतु उस वखत में आत्मार्थि संवेगवंत साधाकि उदे २ पूजा नही थी । इस वास्ते प्रभुने साधां की उदेर पूजा निषेधी हे । परंतु तीर्थ विच्छेद कहेवे तो मिथ्यामती जाणवा । तिर्थ विच्छेद होवे तो भस्मग्रह पीड कीसकों देवे ? उदेर पूजा कीस हटावे ? तथा उतरे किसके उपरो फेर उत्तरे ? पीछे उदे२ पूजा कीसकी होवे ? एह बात विचारवा जोग छे । एह बात कीसेके वस नथी । जिम ज्ञानीने भाव देख्या हे तिम वरतताहे । परंतु मत मतांतरा के झगडे में घणे जीवा के बोध वीर्यका • नास होया हे । इस झगडे में आत्मार्थिको ज्ञान जोइए । इसकालमें तत्त्वके विचारणेवाले जीव थोडे । मत कदाग्रीजीव घणा छे । भगवंते महानिसीथ मध्ये कह्या हे भरतखेत्र में पंचमे कालमे कृष्णपखी जीवाकी उत्पत्ति घणी होवेगी । . मोहपत्ती चर्चा * ७३
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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